Up Kiran, Digital Desk: हमारे समाज में आज भी महिलाओं के दर्द को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. खासकर पेल्विक यानी पेट के निचले हिस्से के दर्द को ‘पीरियड्स का दर्द’ या ‘तनाव’ कहकर टाल दिया जाता है. नतीजा यह होता है कि महिलाएं सालों-साल चुपचाप तकलीफ सहती रहती हैं. हालांकि, पिछले कुछ सालों में एंडोमेट्रियोसिस नाम की बीमारी को लेकर जागरूकता बढ़ी है, लेकिन अब एक नई समस्या खड़ी हो गई है हर पेल्विक दर्द को एंडोमेट्रियोसिस मान लेना.
यह सच है कि भारत में लगभग 4.2 करोड़ महिलाएं एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित हैं. यह एक गंभीर बीमारी है, जिसमें गर्भाशय के अंदर पाए जाने वाले टिश्यू उसके बाहर भी फैलने लगते हैं. लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि पेट के निचले हिस्से में होने वाले दर्द का यह इकलौता कारण नहीं है.
अगर एंडोमेट्रियोसिस नहीं, तो फिर क्या?
पेल्विक दर्द के पीछे कई और वजहें भी हो सकती हैं, जैसे:
एडिनोमायोसिस: इसमें गर्भाशय की अंदरूनी परत मांसपेशियों में घुसने लगती है.
पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज (PID): यह किसी इन्फेक्शन के कारण होता है.
रसौली (Fibroids): गर्भाशय में बनने वाली गांठें.
ओवेरियन सिस्ट (Ovarian Cysts): अंडाशय में बनने वाली गांठ.
इन सभी बीमारियों के लक्षण एंडोमेट्रियोसिस से मिलते-जुलते हैं, लेकिन इनका इलाज बिल्कुल अलग होता है. समस्या तब होती है, जब बिना पूरी जांच के महिला को सिर्फ दर्द निवारक दवाएं या हार्मोनल पिल्स दे दी जाती हैं और असली बीमारी का पता ही नहीं चल पाता.
सही जांच में 7 साल की देरी, एक खामोश कीमत
ICMR की एक स्टडी बताती है कि भारत में किसी महिला को एंडोमेट्रियोसिस की सही जांच के लिए औसतन 7 साल से ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ता है. ये सात साल सिर्फ दर्द में नहीं बीतते, बल्कि इस दौरान बीमारी अंदर ही अंदर बढ़ती रहती है, जिससे शरीर के अंग खराब हो सकते हैं और मां बनने की क्षमता भी कम हो जाती है.
इसकी सबसे बड़ी वजह है महिलाओं के दर्द को ‘नॉर्मल’ मानने की हमारी सामाजिक सोच. "पीरियड्स में दर्द तो होता ही है," यह वाक्य करोड़ों महिलाओं को अपनी तकलीफ को गंभीरता से लेने से रोक देता है. दूसरा कारण है विशेषज्ञों की भारी कमी भारत में 50 लाख महिलाओं पर सिर्फ एक एंडोमेट्रियोसिस स्पेशलिस्ट है.
दर्द सिर्फ शारीरिक नहीं, मानसिक और आर्थिक भी है
यह दर्द सिर्फ शरीर तक सीमित नहीं रहता. एक अनुमान के मुताबिक, भारत में महिलाएं इसके इलाज पर सालाना हज़ारों करोड़ रुपये खर्च करती हैं. इसके अलावा, दर्द की वजह से काम से छुट्टी लेना, करियर छोड़ देना और मानसिक तनाव झेलना पड़ता है.
अब समय आ गया है कि हम पेल्विक दर्द को एक लक्षण मानें, बीमारी नहीं. जब शरीर दर्द के जरिए कोई संकेत दे, तो उसे दबाने की बजाय उसे सुनने और समझने की ज़रूरत है. यह कहानी हर उस महिला की है, जिसे कभी न कभी अपने दर्द को साबित करना पड़ा. अब उन्हें सुनने और समझने की बारी हमारी है.
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