img

Up Kiran, Digital Desk: अंतरराष्ट्रीय व्यापार में दोस्ती और दुश्मनी बहुत तेजी से बदलती है. अभी एक ऐसी ही बड़ी व्यापारिक डील (Trade Deal) पर अनिश्चितता के बादल छा गए हैं. खबरों के मुताबिक, यह डील तब तक आगे नहीं बढ़ सकती, जब तक कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से लगाई जा सकने वाली एक बड़ी शर्त को हटा नहीं दिया जाता. यह शर्त है- 25% का 'तेल से जुड़ा' टैरिफ.

क्या है यह 25% का तेल-लिंक्ड टैरिफ?

टैरिफ का सीधा मतलब होता है किसी दूसरे देश से आने वाले सामान पर लगाया जाने वाला टैक्स (आयात शुल्क). अगर यह टैरिफ लागू होता है, तो उस देश से अमेरिका आने वाले सामान पर 25% का अतिरिक्त टैक्स लगेगा, जिससे वह सामान अमेरिकी बाजार में बहुत महंगा हो जाएगा.

लेकिन यह कोई आम टैरिफ नहीं है. इसे 'तेल-लिंक्ड' यानी तेल की राजनीति से जोड़ा जा रहा है. इसका मतलब यह हो सकता है कि अगर कोई देश अमेरिका के विरोधी माने जाने वाले देशों (जैसे रूस या ईरान) से तेल खरीदता है, तो उस देश से अमेरिका आने वाले सभी तरह के सामानों पर यह 25% का भारी-भरकम टैक्स लगा दिया जाएगा. यह एक तरह से दूसरे देशों पर दबाव बनाने की रणनीति है कि वे तेल किससे खरीदें और किससे नहीं.

इस शर्त से डील क्यों रुकी हुई है?

कोई भी देश ऐसी शर्त पर राजी नहीं होना चाहेगा. 25% का टैरिफ किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को हिला सकता है. इससे उस देश की कंपनियों के लिए अमेरिकी बाज़ार में टिकना लगभग नामुमकिन हो जाएगा, जिससे उस देश में नौकरियां जाएंगी और व्यापार को भारी नुकसान होगा.

चूंकि डोनाल्ड ट्रंप अपनी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में भी कई देशों पर भारी टैरिफ लगाए थे, इसलिए उनकी इस संभावित शर्त को बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है. बातचीत करने वाले पक्ष यह जोखिम नहीं लेना चाहते कि वे आज एक डील साइन करें और कल सत्ता बदलने पर उन पर यह भारी टैरिफ थोप दिया जाए.

फिलहाल, इस बड़ी डील का भविष्य अधर में लटका हुआ है. दुनिया की नजरें इस पर टिकी हैं कि क्या व्यापारिक हितों को सबसे ऊपर रखा जाएगा, या फिर आने वाले समय की राजनीतिक अनिश्चितता इस महत्वपूर्ण समझौते पर भारी पड़ेगी.