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Up Kiran, Digital Desk: भारत सरकार ने 1 जुलाई, 2022 को एकल-उपयोग प्लास्टिक (Single-Use Plastic) के 19 विशिष्ट वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया था। इस प्रतिबंध का मुख्य उद्देश्य प्लास्टिक कचरे के बढ़ते अंबार को रोकना और प्रदूषण को कम करना था। इस प्रतिबंध को लागू किए हुए समय बीत चुका है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसके पूर्ण और प्रभावी कार्यान्वयन में अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

प्रतिबंध के पीछे का इरादा बिल्कुल स्पष्ट और सराहनीय था - हमारे पर्यावरण पर प्लास्टिक के हानिकारक प्रभाव को कम करना। लेकिन व्यवहार में, इस प्रतिबंध को पूरी तरह से सफल बनाना उतना आसान साबित नहीं हो रहा है जितना सोचा गया था। मुख्य मुश्किलों में से एक है प्रतिबंध के दायरे में आने वाली वस्तुओं के लिए किफायती और आसानी से उपलब्ध विकल्पों की कमी। कई व्यवसाय और उपभोक्ता अभी भी इन प्लास्टिक उत्पादों का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि उनके पास सुविधाजनक और सस्ते विकल्प मौजूद नहीं हैं।

प्रवर्तन (Enforcement) भी एक बड़ी चुनौती है। देश भर के विभिन्न राज्यों, शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रतिबंध को समान रूप से और सख्ती से लागू करना सरकारी एजेंसियों के लिए मुश्किल हो रहा है। उत्पादन, वितरण और उपयोग के हर स्तर पर निगरानी रखना और नियमों का पालन करवाना एक जटिल कार्य है। कई छोटे विक्रेता और दुकानदार अभी भी प्रतिबंध का उल्लंघन करते पाए जाते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां निगरानी कम है।

इसके अलावा, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण (recycling) के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी भी एक समस्या है। भले ही कुछ प्रकार के प्लास्टिक की अनुमति है, लेकिन उनके उचित निपटान और प्रसंस्करण की प्रणाली अभी भी पूरी तरह से विकसित नहीं हुई है।

कुल मिलाकर, भारत का एकल-उपयोग प्लास्टिक प्रतिबंध एक सही दिशा में उठाया गया कदम है और इसके सकारात्मक प्रभाव भी दिख रहे हैं, लेकिन पूर्ण सफलता के लिए अभी भी लंबा रास्ता तय करना है। इसके लिए न केवल सरकारी एजेंसियों द्वारा मजबूत प्रवर्तन की आवश्यकता है, बल्कि नागरिकों, व्यवसायों और निर्माताओं के बीच सहयोग और वैकल्पिक समाधानों को अपनाने की इच्छाशक्ति भी महत्वपूर्ण है।

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