
Up Kiran, Digital Desk: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आज हर क्षेत्र में तेज़ी से अपनी जगह बना रहा है, और स्वास्थ्य सेवा (Healthcare) क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। गूगल डीपमाइंड (Google DeepMind) के सीईओ डेमिस हसबिस (Demis Hassabis) ने हाल ही में एक ऐसे भविष्य की तस्वीर पेश की है, जहाँ AI स्वास्थ्य सेवाओं को बदलने वाला है। हसबिस के अनुसार, आने वाले 5 से 10 सालों में AI, मेडिकल क्षेत्र में बड़े बदलाव लाएगा, जहाँ कुछ हद तक AI डॉक्टर्स की जगह ले सकता है, लेकिन नर्सेस (Nurses) की जगह कभी नहीं ले पाएगा।
AI और डॉक्टर्स: एक नया अध्याय?
डेमिस हसबिस ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि AI, मेडिकल डेटा, एक्स-रे (X-ray), सीटी स्कैन (CT Scan) और अन्य टेस्ट रिपोर्ट्स का विश्लेषण इंसानों की तुलना में कहीं अधिक तेज़ी और सटीकता से कर सकता है। AI, बीमारियों का शुरुआती चरण में पता लगाने में डॉक्टरों की मदद कर सकता है, जैसे कैंसर (Cancer), टीबी (TB) या फेफड़ों के संक्रमण। यह दवाइयों की खोज (Drug Discovery) और अनुसंधान (Research) को भी गति दे सकता है, जो अक्सर एक लंबी और महंगी प्रक्रिया होती है।
हसबिस ने यह भी कहा कि AI, डॉक्टरों के डायग्नोस्टिक (Diagnostic) कार्यों में सहायक हो सकता है, और कुछ मामलों में उनकी जगह भी ले सकता है। AI-संचालित उपकरण मेडिकल इमेजेज का विश्लेषण करके उन बारीक पैटर्न को भी पकड़ सकते हैं, जिन्हें अक्सर इंसानी नज़रअंदाज़ कर देती है। यह व्यक्तिगत उपचार (Personalized Treatment) के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जहाँ AI मरीज़ की जेनेटिक जानकारी और मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर सबसे उपयुक्त इलाज सुझाएगा। Google DeepMind पहले से ही AI का उपयोग करके विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के निदान में सुधार करने पर काम कर रहा है, जैसे एक्यूट किडनी इंजरी (AKI) का अनुमान लगाना।
नर्सेस की भूमिका: क्यों AI नहीं ले सकता इनकी जगह?
हालांकि AI मेडिकल क्षेत्र में काफी सक्षम साबित हो रहा है, हसबिस ने इस बात पर ज़ोर दिया कि AI नर्सेस की जगह नहीं ले सकता। इसका मुख्य कारण है मानवीय स्पर्श, सहानुभूति, और भावनात्मक जुड़ाव। नर्सेस केवल दवाएँ देने या मरीज़ की निगरानी करने तक सीमित नहीं हैं; वे मरीज़ों को भावनात्मक सहारा, आराम और एक व्यक्तिगत संबंध प्रदान करती हैं। हसबिस ने कहा, “AI किसी का हाथ नहीं पकड़ सकता” बीमार और डरे हुए मरीज़ को दिलासा देना, उनके सिर पर हाथ फेरना, या किसी की तकलीफ़ को समझना - ये वो मानवीय कार्य हैं जहाँ AI की सीमाएँ स्पष्ट हो जाती हैं। यह मानवीय देखभाल (Human Empathy) ही है जो नर्सेस को AI से अलग बनाती है और उनके रोल को अनमोल बनाती है।
AI और भविष्य का वर्कफ़्लो: सहयोग की ओर एक कदम
हसबिस का मानना है कि AI, डॉक्टरों और नर्सेस पर से काम का बोझ कम करेगा[9]। AI, डेटा-संचालित, दोहराव वाले और विश्लेषणात्मक कार्यों को संभालेगा, जिससे मानव स्वास्थ्यकर्मी (Healthcare Professionals) रचनात्मक समस्या-समाधान, भावनात्मक जुड़ाव और नेतृत्व जैसी भूमिकाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित कर पाएंगे। यह एक ऐसा भविष्य होगा जहाँ AI एक सहायक (Assistant) के रूप में काम करेगा, न कि मानव संपर्क का प्रतिस्थापन (Replacement) बनकर।
AI का भारतीय हेल्थकेयर पर प्रभाव
भारत जैसे विशाल और विविध देश में, जहाँ स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है, AI की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। AI, ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर्स की कमी को पूरा करने, टेलीमेडिसिन (Telemedicine) को बढ़ावा देने और बीमारियों का शीघ्र पता लगाने में मदद कर सकता है। AI-पावर्ड डायग्नोस्टिक टूल्स, जैसे कि एक्स-रे और सीटी स्कैन का विश्लेषण, भारत में टीबी, कैंसर और अन्य बीमारियों के शुरुआती निदान में क्रांति ला सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ प्रशिक्षित रेडियोलॉजिस्ट की कमी है।
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