
Up Kiran, Digital Desk: मैं अपने साथ सिर्फ तिरंगा नहीं, बल्कि 1.4 अरब देशवासियों की उम्मीदें लेकर गया था." यह कहना है भारत के एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला का. मंगलवार को डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (AKTU) के दीक्षांत समारोह में उन्होंने अपने हालिया अंतरिक्ष मिशन के अनुभव साझा किए और ग्रेजुएट हो रहे छात्रों से "एक निडर, महत्वाकांक्षी और न रुकने वाले भारत" के निर्माण में सक्रिय रूप से योगदान करने का आह्वान किया.
इससे पहले, विश्वविद्यालय ने शुभांशु शुक्ला को डॉक्टर ऑफ साइंस (DSc) की मानद उपाधि से सम्मानित किया.
शुक्ला, जिन्होंने जून 2025 में 20 दिनों का अंतरिक्ष मिशन पूरा किया था, ने बताया कि यह पहली बार था जब भारत ने अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी पर रिसर्च की. उन्होंने कहा, "विज्ञान से परे, यह अनुभव ही था जिसने मुझे वे सबक सिखाए जो मैं आज आपके साथ साझा करना चाहता हूँ."
"मैं बता नहीं सकता कि कितनी बार मुझे डर लगा या मैं हताश हुआ. लेकिन एक चीज जिसने मुझे हमेशा आगे बढ़ाया, वह था 'विश्वास' - कभी अपने काम पर, कभी अपने लक्ष्य पर, लेकिन लगभग हमेशा खुद पर. आप जीवन में कहीं भी हों, खुद पर विश्वास करना कभी मत छोड़ना."
सफलता के 7 सिद्धांत
एस्ट्रोनॉट ने छात्रों को सफलता के लिए अपने "सात सिद्धांत" बताए और उन्हें जीवन में अपनाने का आग्रह किया:
धैर्य रखें: जब जिंदगी आपकी टाइमलाइन के हिसाब से न चले तो सब्र का साथ न छोड़ें.
फोकस बनाए रखें: जब आसपास बहुत शोर हो, तो भी अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखें.
हर रोज डटे रहें: क्योंकि आपके सपनों को आपके मूड से कोई फर्क नहीं पड़ता.
लचीले बनें: जब योजनाएं विफल हो जाएं, तो हालात के हिसाब से ढलना सीखें और वह बदलाव बनें जो आप देखना चाहते हैं.
मिलकर काम करें: क्योंकि कोई भी अकेले महानता हासिल नहीं करता.
साहस दिखाएं: क्योंकि डर हमेशा रहेगा, लेकिन आपकी आस्था उससे ज्यादा मजबूत हो सकती है.
और सबसे ऊपर, सफर का आनंद लें.
32 दिन का क्वारंटाइन और रॉकेट लॉन्च का अनुभव
अपने मिशन के अनुभव को याद करते हुए शुक्ला ने लॉन्च से पहले के अभूतपूर्व 32-दिन के क्वारंटाइन को याद किया, जिसे उन्होंने मानव अंतरिक्ष उड़ान के इतिहास में सबसे लंबे क्वारंटाइन में से एक बताया.
उन्होंने कहा, "इंतजार करना समय की बर्बादी नहीं, बल्कि तैयारी है. उस समय ने मुझे अपनी प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने और अप्रत्याशित स्थितियों के लिए अभ्यास करने का मौका दिया. इसी ने सुनिश्चित किया कि हमारा मिशन सफल हो. यही बात जीवन में भी लागू होती है - नौकरी मिलने में देरी हो सकती है, प्रोजेक्ट तुरंत शुरू नहीं हो सकते, लेकिन धैर्य रखना सक्रिय सहनशीलता है, न कि निष्क्रिय हार."
रॉकेट लॉन्च की ताकत का वर्णन करते हुए शुक्ला ने कहा, “जैसे ही वे नौ इंजन चालू होते हैं, आपकी सारी गणनाएं और कल्पनाएं खिड़की से बाहर चली जाती हैं. उस जबरदस्त ताकत ने गति और ऊर्जा के बारे में मेरी समझ को ही बदल दिया. घबराहट होना स्वाभाविक है, लेकिन ट्रेनिंग आपको डर पर नहीं, बल्कि अगले चेकलिस्ट आइटम, अगले बटन पर ध्यान केंद्रित करना सिखाती है. इसी तरह आप आगे बढ़ते हैं.”
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