Up kiran,Digital Desk : सर्दियां आते ही दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों का 'गैस चैंबर' बन जाना अब एक ऐसी सच्चाई बन गया है, जो बदल ही नहीं रही। पिछले सात सालों से हर सर्दियों में हम एक ही कहानी सुनते और जीते हैं - जहरीली हवा, आंखों में जलन, और सांस लेने में तकलीफ।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की एक नई रिपोर्ट ने इस कड़वी सच्चाई पर मुहर लगा दी है। रिपोर्ट बताती है कि 2019 से 2025 तक, सात सालों में, सर्दियों के दौरान हवा की गुणवत्ता में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। हम आज भी वहीं खड़े हैं, जहां सात साल पहले थे।
इस बार 'पराली' तो बस बहाना है...
हर साल हम प्रदूषण के लिए पंजाब और हरियाणा में जलने वाली पराली को सबसे बड़ा विलेन मानते हैं। लेकिन इस साल की कहानी कुछ अलग है। इस बार बाढ़ के कारण पराली जलाने की घटनाएं काफी कम हुईं। इसके बावजूद, दिल्ली-NCR की हवा 'बहुत खराब' से 'गंभीर' श्रेणी में ही बनी रही।
तो फिर असली विलेन कौन है? रिपोर्ट साफ इशारा करती है कि असली गुनहगार हमारे अपने शहरों की सड़कों पर दौड़ रही गाड़ियां और फैक्ट्रियों-कंस्ट्रक्शन से उड़ने वाली धूल है। यानी, पराली का धुआं कम होने के बाद भी, हम अपने ही पैदा किए हुए प्रदूषण में घुट रहे हैं।
आंकड़े नहीं, ये हमारी सेहत का रिपोर्ट कार्ड है
- खतरनाक स्तर पर स्थिर: पिछले 7 सालों में, सर्दियों में PM 2.5 का औसत 140 से 180 के बीच अटका हुआ है। यह WHO के सुरक्षित माने जाने वाले 2.5 के मानक से 60-70 गुना ज्यादा है।
- सबसे प्रदूषित इलाके: जहांगीरपुरी, बवाना और वजीरपुर जैसे इलाके शहर के 'हॉटस्पॉट' बन चुके हैं, जहां प्रदूषण का स्तर सबसे खतरनाक है।
- सुबह-शाम सबसे घातक: सुबह ऑफिस जाने और शाम को घर लौटने का समय (7-10 बजे और 6-9 बजे) सबसे जहरीला होता है, क्योंकि इस वक्त सड़कों पर गाड़ियों का धुआं अपने चरम पर होता है।
अस्पतालों में लगी मरीजों की लाइन
इस जहरीली हवा का असर अब सीधे हमारे शरीर पर दिख रहा है। अस्पतालों की OPD में सांस से जुड़े मरीजों की संख्या में 33% तक का उछाल आया है।
- डॉक्टरों का कहना है कि जिन लोगों का अस्थमा ठीक हो गया था, इस प्रदूषण ने उनकी बीमारी को फिर से जगा दिया है।
- खांसी, सीने में जकड़न और आंखों में जलन की शिकायत लेकर आने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
अब छोटे-मोटे उपायों से काम नहीं चलेगा
CSE ने चेतावनी दी है कि अब झाड़ू लगाने या पानी का छिड़काव करने जैसे छोटे-मोटे उपायों से काम नहीं चलने वाला। दिल्ली एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए बहुत बड़े और कड़े फैसले लेने होंगे।
- गाड़ियों पर लगाम: पुरानी गाड़ियों को सड़कों से हटाना होगा और इलेक्ट्रिक गाड़ियों को तेजी से अपनाना होगा।
- पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर बनाना: बसों, मेट्रो की कनेक्टिविटी बढ़ानी होगी ताकि लोग अपनी गाड़ियां निकालने पर मजबूर न हों।
- कंजेशन टैक्स: शहर के व्यस्त इलाकों में अपनी गाड़ी ले जाने पर भारी टैक्स लगाने जैसा कड़ा कदम उठाना पड़ सकता है।
एक दिन की राहत के बाद दिल्ली की हवा फिर से जहरीली हो गई है। यह साफ है कि जब तक हम इन बड़ी समस्याओं का सामना नहीं करेंगे, तब तक हर साल सर्दियों में हमारी सांसों पर इसी तरह 'इमरजेंसी' लगती रहेगी।
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