img

Up Kiran, Digital Desk: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में दो दशक पुराने दहेज हत्या के एक मामले में आरोपी पति की उस दलील को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें उसने अपनी सैन्य सेवा की परिस्थितियों को अपने बचाव का आधार बनाया था। यह फैसला महिला सुरक्षा और न्याय के प्रति न्यायपालिका के दृढ़ रुख को दर्शाता है।

यह मामला एक महिला की दहेज के कारण हुई मौत से जुड़ा है, जहाँ आरोपी पति सेना में सेवारत था। उसने अपनी दलील में यह तर्क दिया था कि सैन्य सेवा की कठोर परिस्थितियाँ और दबाव उसके व्यवहार या कथित अपराध का कारण बन सकते हैं।

लेकिन, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की अवकाश पीठ ने इस दलील को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया। अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि सैन्य सेवा या किसी भी प्रतिष्ठित पेशे से जुड़ा होना किसी को दहेज उत्पीड़न या क्रूरता जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने का लाइसेंस नहीं देता है।

न्यायाधीशों ने इस बात पर जोर दिया कि सेना के कर्मियों से सर्वोच्च नैतिक मानकों और अनुशासन का पालन करने की अपेक्षा की जाती है। उनका कर्तव्य सिर्फ सीमा पर देश की रक्षा करना नहीं है, बल्कि अपने परिवार और समाज के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाना है। अदालत ने कहा कि कोई भी पेशा, चाहे वह कितना भी प्रतिष्ठित क्यों न हो, किसी को कानून से ऊपर नहीं रख सकता, खासकर जब बात महिलाओं के खिलाफ हिंसा की हो।

यह फैसला देश के कानून की समानता और हर नागरिक की जवाबदेही पर मुहर लगाता है, भले ही उनका पेशा कुछ भी हो। यह उन सभी लोगों के लिए एक कड़ा संदेश है जो अपने पेशे का इस्तेमाल अपने आपराधिक कृत्यों को सही ठहराने के लिए करना चाहते हैं, खासकर दहेज हत्या जैसे संवेदनशील और अमानवीय मामलों में। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि कानून की निगाह में सभी समान हैं और किसी को भी न्याय से बचने के लिए कोई विशेष छूट नहीं मिलेगी।

--Advertisement--