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Up Kiran, Digital Desk: बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से चुनावी नतीजों का सबसे बड़ा आधार रहे हैं। लेकिन इस बार मुद्दा सिर्फ समीकरण का नहीं, बल्कि वोट ट्रांसफर और मजबूत जनाधार का भी है। जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी की जोड़ी ऐसे वर्गों को साथ ला रही है, जो अब तक अपने-अपने पाले में बंटे थे। इसका असर सीधे चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है।
सवर्ण मतदाता: भाजपा की भरोसेमंद ताकत
बिहार में ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ जैसी सवर्ण जातियों की कुल आबादी करीब 15 फीसदी है। हालांकि संख्या कम है, लेकिन इनकी राजनीतिक पकड़ बेहद मजबूत मानी जाती है। ये जातियां न सिर्फ कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती हैं, बल्कि समाज में ओपिनियन लीडर की भूमिका भी अदा करती हैं।
बीते दशकों में ये वर्ग कांग्रेस से खिसककर भाजपा के खेमे में आ चुका है। अगर एक बार फिर ये पूरी तरह भाजपा के साथ रहता है, तो मुकाबला और भी रोचक हो सकता है।
36% वोट बैंक: नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत
अब बात अति पिछड़ा वर्ग की करें, तो इस वर्ग की आबादी लगभग 36% है। इसमें कुशवाहा, कोइरी, कुर्मी, कश्यप जैसे समुदाय शामिल हैं। नीतीश कुमार ने जब आरजेडी के यादव-मुस्लिम समीकरण का जवाब ढूंढ़ा, तो इन्हीं वर्गों को अपना आधार बनाया। पंचायत चुनावों में आरक्षण देकर उन्होंने इस वोट बैंक को और भी मजबूत किया।
आज की तारीख में यह वर्ग नीतीश के साथ सबसे मज़बूती से खड़ा नजर आता है।
जब दो मजबूत वोट बैंक एकसाथ आए…
भाजपा के पास सवर्णों का समर्थन है और जेडीयू के पास अति पिछड़ों का। जब ये दोनों साथ आते हैं, तो एक बड़ा सामाजिक गठजोड़ बनता है। इन दो वर्गों के बीच कोई सीधी टकराहट नहीं है, इसलिए वोट ट्रांसफर में भी कोई बड़ी दिक्कत नहीं होती। यही वजह है कि एनडीए का यह गठबंधन कई सीटों पर आरजेडी को कड़ी टक्कर देता नजर आ रहा है।
पासवान वोट बैंक में खटपट? चिराग की मांगें बढ़ा सकती हैं टेंशन
बिहार की राजनीति में पासवान समुदाय का भी अपना एक अहम रोल है। इनकी संख्या करीब 5.3% है और ये कई सीटों पर निर्णायक हैं। हालांकि इस बार चिराग पासवान की मांगें एनडीए के लिए परेशानी का कारण बन सकती हैं।
वह 40 सीटों की मांग कर रहे हैं जबकि भाजपा उन्हें 22–25 सीटें ही देना चाहती है। हालांकि भाजपा को भरोसा है कि अगर चिराग अलग भी हुए, तो पासवान वोट पूरी तरह नहीं खिसकेगा, क्योंकि दलित समुदाय खुद कई धड़ों में बंटा हुआ है और कुछ वर्ग नीतीश-मोदी फैक्टर पर वोट कर सकते हैं।