_1628831024.png)
Up Kiran, Digital Desk: केरल की नर्स निमिषा प्रिया की ज़िंदगी को लेकर भारत में जो आखिरी उम्मीद बची थी, वह भी अब खत्म होती दिख रही है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने साफ कर दिया कि वो अपनी तरफ से इस मामले में अब ज़्यादा कुछ नहीं कर सकती। इस बयान के बाद निमिषा के परिवार की चिंता और बढ़ गई है, क्योंकि 16 जुलाई को यमन की अदालत से उन्हें मौत की सज़ा सुनाई जा सकती है।
दरअसल, निमिषा पर यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या का इल्ज़ाम साबित हो चुका है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह हत्या बेहद निर्मम तरीके से हुई थी। आरोप है कि शव को काटकर टैंक में छुपा दिया गया था। हालांकि, कई बार निमिषा ने अदालत में खुद को बेकसूर बताया और फैसलों को चुनौती दी, मगर अब तक कोई राहत नहीं मिल पाई।
इस केस में भारत सरकार की तरफ से अदालत में पेश हुए एटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने साफ कहा कि 'सरकार की कोशिशों की एक सीमा है और हम उस हद तक पहुंच चुके हैं। अब इसके बाद कोई कूटनीतिक दखल देना संभव नहीं होगा, क्योंकि यमन का कानून इस पर सख्त है।'
ब्लड मनी ही एक आखिरी रास्ता
फिलहाल बचाव का एक ही रास्ता बचा है ‘ब्लड मनी’। मिडिल ईस्ट के कई देशों में प्रचलित इस परंपरा के तहत दोषी पक्ष पीड़ित परिवार को मुआवज़े के तौर पर एक बड़ी रकम देता है। इसके बदले में पीड़ित परिवार चाहे तो अपराधी को माफ कर सकता है। सरकार ने भी कोर्ट में कहा कि अब सब कुछ पीड़ित परिवार की मर्ज़ी पर निर्भर है कि वे ब्लड मनी स्वीकार करते हैं या नहीं।
इस्लामिक कानून में यह प्रथा इसलिए खास मानी जाती है, क्योंकि इसमें फैसले का अधिकार अदालत के बजाय मृतक के परिवार को दिया जाता है। हालांकि, रकम कितनी होगी, ये दोनों पक्ष आपसी सहमति से तय करते हैं।
निमिषा के मामले में मुश्किल ये है कि अब तक पीड़ित परिवार ने मुआवज़ा लेने से इनकार ही किया है। ऐसे में उनके परिजन लगातार भारत सरकार से अपील कर रहे हैं कि वह किसी तरह परिवार को मनाने में मदद करे। इस बीच कई सामाजिक संगठन भी इसके लिए फंड जुटा रहे हैं ताकि अगर पीड़ित परिवार तैयार हो तो रकम तुरंत दी जा सके।
पल्लकड़ की रहने वाली निमिषा एक नर्स थीं और काम के सिलसिले में यमन गई थीं। परिवार का दावा है कि उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया है, मगर अब तक कानूनी लड़ाई में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट में सरकार के रुख से यह भी साफ हो गया कि अब कूटनीतिक मोर्चे पर भी ज्यादा गुंजाइश नहीं बची है।
--Advertisement--