Up Kiran, Digital Desk: कभी सोचा नहीं था काशीपुर गांव वालों ने कि उनका ओमप्रकाश एक दिन फिर से लौटेगा। पूरा गांव तो उसे मर चुका मान बैठा था। पिता भी चल बसे। घर वाले सालों से श्राद्ध करते रहे। मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
शुक्रवार का दिन। गांव में अचानक हलचल मच गई। लोग दौड़ते हुए इकट्ठा होने लगे। वजह थी एक 55 साल का शख्स जो अपने 15 साल के बेटे जुम्मन के साथ गांव की गलियों में कदम रख रहा था। चेहरा वही था जो 40 साल पहले 15 साल की उम्र में नाराज होकर घर छोड़ गया था। नाम अब बदल चुका था। दिल्ली में सब उसे सलीम पुत्र ताहिर हुसैन कहते थे।
बड़ी बहन चंद्रकली ने जैसे ही भाई को देखा पैरों तले जमीन खिसक गई। आंसुओं का सैलाब आ गया। छोटा भाई रोशनलाल भतीजे कुंवरसेन वीरपाल सब दौड़े चले आए। ग्राम प्रधान वीरेंद्र राजपूत ने फूल मालाएं तैयार रखी थीं। पूरा गांव जुलूस बनाकर स्वागत करने लगा।
दरअसल दिल्ली में चल रहे विशेष प्रगाढ़ पुनरीक्षण यानी एसआईआर सर्वे में सलीम को अपने असली माता-पिता के कागजात दिखाने पड़े। आईडी प्रूफ नहीं मिला तो मोहल्ले वालों ने जो नकली नाम पता बनवाया था वह काम नहीं आया। मजबूरन उसे सच बोलकर गांव लौटना पड़ा।
ओमप्रकाश ने बताया कि घर छोड़ने के बाद पहले बरेली में मजदूरी की फिर दिल्ली पहुंच गया। वहां शाहबानो से शादी हुई। चार बेटियां रुखसाना रुखसार रूपा कुप्पा और एक बेटा जुम्मन हुआ। तीन बेटियों की शादी भी हो चुकी है। सब खुश थे मगर अब दिल सिर्फ अपने गांव को याद करने लगा।
गांव वालों ने पहले उन्हें मंदिर ले जाकर स्नान करवाया। फिर विधि विधान से सनातन धर्म में घरवापसी कराई। माथे पर तिलक लगाया। मालाएं पहनाईं। ढोल नगाड़ों के साथ भोज का आयोजन हुआ। ओमप्रकाश उर्फ सलीम की आंखों में भी आंसू थे। उसने कहा अब यही बसना है। सारे कागजात यहीं बनवाऊंगा। परिवार को भी यहीं लाऊंगा।




