
Up Kiran, Digital Desk: भारत के युवा मन में समानता, न्याय और सामाजिक सुधारों की भावना को जगाने के उद्देश्य से, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने अपने पाठ्यक्रम में एक महत्वपूर्ण बदलाव की घोषणा की है। बोर्ड अब नए भारतीय आपराधिक कानूनों के तहत हुए ऐतिहासिक सुधारों को अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाएगा। इसमें सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाली धारा 377 का निरसन और तीन तलाक को प्रतिबंधित करने वाला कानून शामिल है। इस कदम का उद्देश्य छात्रों को देश के कानूनी और सामाजिक विकास से अवगत कराना और उन्हें जागरूक नागरिक के रूप में तैयार करना है।
कानूनी सुधारों का पाठ्यक्रम में समावेश: क्यों है ज़रूरी?
देश के आपराधिक न्याय प्रणाली में हुए ये बड़े सुधार सामाजिक परिवर्तन की एक महत्वपूर्ण मिसाल हैं। धारा 377 को अपराध की श्रेणी से हटाना LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों के लिए एक बड़ी जीत थी, जिसने समानता और गरिमा के महत्व को रेखांकित किया। इसी तरह, तीन तलाक को प्रतिबंधित करने वाले कानून ने महिलाओं को लैंगिक समानता और सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।
CBSE द्वारा इन कानूनों को पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय छात्रों को इन सामाजिक और कानूनी विकासों से अवगत कराने के लिए लिया गया है। यह उन्हें यह समझने में मदद करेगा कि कैसे कानून समाज को आकार देते हैं और कैसे समानता, न्याय और मानवाधिकार जैसे महत्वपूर्ण मूल्य देश के विधायी ढांचे का हिस्सा बनते हैं। इस प्रकार का ज्ञान युवा पीढ़ी को अधिक सहिष्णु, समावेशी और सूचित समाज के निर्माण में योगदान करने के लिए सशक्त करेगा।
नए आपराधिक कानून: इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़
यह ध्यान देने योग्य है कि ये सुधार भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम जैसे ब्रिटिश-काल के पुराने कानूनों को बदलने के लिए लाए गए नए भारतीय आपराधिक कानूनों का हिस्सा हैं। नए कानूनों का उद्देश्य भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप और नागरिकों के अधिकारों को प्राथमिकता देना है।
CBSE के इस फैसले से छात्रों को न केवल कानूनी शब्दावली से परिचित होने का अवसर मिलेगा, बल्कि वे सामाजिक न्याय और समानता जैसे विषयों पर भी अपनी समझ विकसित कर पाएंगे। यह निश्चित रूप से अगली पीढ़ी को सक्रिय और जिम्मेदार नागरिक बनाने में सहायक सिद्ध होगा।
छात्रों के लिए ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक:
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करने से छात्रों में संविधानिक मूल्यों के प्रति गहरी समझ पैदा होगी। वे भेदभाव के विभिन्न रूपों के बारे में जानेंगे और समानता के अधिकार के महत्व को समझेंगे। यह कदम समझौते, स्वीकृति और समावेशिता की भावना को बढ़ावा देगा।
यह पहल इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा केवल अकादमिक ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह छात्रों को समाज में सक्रिय भूमिका निभाने और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए भी तैयार करती है।
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