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Up Kiran , Digital Desk: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को मुख्य सचिवालय स्थित सभा कक्ष में बाढ़ और संभावित सुखाड़ को लेकर एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की। मौसम परिवर्तन और जलवायु असंतुलन के संकेतों के बीच उन्होंने स्पष्ट कहा – “राज्य के खजाने पर पहला अधिकार आपदा पीड़ितों का है।” उनके इस बयान ने यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य सरकार इस बार संभावित प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए प्रोएक्टिव (पूर्व-सक्रिय) रवैया अपनाने जा रही है।

मुख्यमंत्री ने सभी संबंधित विभागों को इस महीने के अंत तक सभी आवश्यक तैयारियां पूरी करने का निर्देश दिया। बैठक में कृषि, जल संसाधन, स्वास्थ्य, ग्रामीण कार्य, आपदा प्रबंधन सहित कई विभागों के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।

2007 की बाढ़ से लेकर 2008 की कोसी त्रासदी तक: पिछली आपदाओं से सीखे गए सबक

मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में वर्ष 2007 और 2008 की भयानक बाढ़ की याद दिलाई। उन्होंने बताया कि 2007 में 22 जिलों के करीब 2.5 करोड़ लोग, जबकि कोसी त्रासदी 2008 में 5 जिलों के लगभग 34 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए थे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उस वक्त हमने विश्व बैंक से कर्ज लेकर राहत और पुनर्वास का कार्य चलाया। वह अनुभव आज हमारे सामने एक मजबूत आपदा प्रबंधन ढांचा खड़ा करने में सहायक हुआ।

सरकारी योजनाएं: अब बाढ़ पीड़ितों को मिलेगा 7 हजार रुपये का अनुदान

वर्ष 2016 से शुरू की गई आनुग्रहिक अनुदान योजना का विस्तार करते हुए वर्ष 2023 में सहायता राशि को 6 हजार से बढ़ाकर 7 हजार रुपये कर दिया गया। साथ ही, आपदा में मृत व्यक्तियों के आश्रितों को 4 लाख रुपये की सहायता देने की व्यवस्था को भी सुदृढ़ किया गया है।

मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि तटबंधों की सुरक्षा, क्षतिग्रस्त सड़कों की मरम्मत, और स्वास्थ्य व्यवस्था, पेयजल आपूर्ति, तथा किसानों को मुआवजा जैसे सभी पहलुओं पर समय रहते काम सुनिश्चित किया जाए।

प्रशासनिक सतर्कता और मानवीय संवेदना की साझी रणनीति

नीतीश कुमार ने कहा कि सिर्फ कागज़ पर योजनाएं बना देने से राहत नहीं मिलती, इसके लिए मौके पर जाकर स्थिति का मूल्यांकन और जनता से संवाद बेहद ज़रूरी है। उन्होंने सभी जिलाधिकारियों और विभागीय अधिकारियों को क्षेत्र भ्रमण कर जमीनी स्थिति का आंकलन करने और जनता से सीधा संवाद करने के निर्देश दिए।

उन्होंने कहा, “मौसम के बदलते मिजाज को ध्यान में रखकर हमें पूरी सतर्कता के साथ काम करना होगा। समय पर पहल और स्थानीय स्तर पर संवेदनशील प्रशासन ही सबसे बड़ा राहत बन सकता है।”

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