
Up Kiran, Digital Desk: चीन द्वारा 'दुर्लभ पृथ्वी' खनिजों (Rare Earth Minerals) के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों का सीधा असर तेलंगाना के विनिर्माण क्षेत्र पर पड़ रहा है। इस संबंध में चिंता व्यक्त करते हुए तेलंगाना चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री फेडरेशन (FTCCI) के अध्यक्ष श्रीधर वेमुलापल्ली ने कहा कि इससे राज्य के उद्योगों को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
वेमुलापल्ली ने इस बात पर जोर दिया कि इन प्रतिबंधों से विनिर्माण लागत में काफी वृद्धि हुई है और सामग्री की खरीद में भी कठिनाई आ रही है। इसका खामियाजा विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, रक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को भुगतना पड़ रहा है, जो दुर्लभ पृथ्वी खनिजों पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं।
'दुर्लभ पृथ्वी' खनिज 17 रासायनिक तत्वों का एक समूह हैं। ये तत्व स्मार्टफोन, कंप्यूटर, इलेक्ट्रिक वाहन, पवन टरबाइन और मिसाइल जैसी आधुनिक तकनीकों के निर्माण के लिए अनिवार्य हैं। चीन दुनिया में इन खनिजों का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है, जिसका वैश्विक उत्पादन में 90% से अधिक हिस्सा है।
चीन अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों को साधने और अन्य देशों पर दबाव बनाने के लिए अक्सर इन खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाता रहा है। इन प्रतिबंधों का उद्देश्य वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित करना और उन देशों को नुकसान पहुंचाना है जो चीन पर अत्यधिक निर्भर हैं।
श्रीधर वेमुलापल्ली ने सुझाव दिया कि भारत को इन खनिजों के लिए चीन पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए। इसके लिए देश को दुर्लभ पृथ्वी खनिजों की घरेलू खोज, खनन और प्रसंस्करण क्षमताओं को मजबूत करने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत के पास पर्याप्त दुर्लभ पृथ्वी भंडार हैं, लेकिन प्रसंस्करण सुविधाएँ अभी भी सीमित हैं। इन क्षमताओं को विकसित करने से भारत अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकेगा और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भी एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन सकेगा।
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