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नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक अभियान को तेज करने के उद्देश्य से गठित ‘ऑल पार्टी डेलिगेशन’ में कांग्रेस सांसद शशि थरूर को शामिल करने का निर्णय राजनीतिक हलकों में चर्चा और विवाद का विषय बन गया है। खास बात यह है कि कांग्रेस पार्टी ने इस प्रतिनिधिमंडल के लिए अपना कोई नाम प्रस्तावित नहीं किया था, इसके बावजूद थरूर का चयन केंद्र ने किया।

यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब भारत ने ‘पाक बेनकाब’ नामक रणनीति के तहत पाकिस्तान द्वारा फैलाए जा रहे दुष्प्रचार और आतंकवाद के समर्थन को वैश्विक मंचों पर उजागर करने की योजना बनाई है। इस अभियान में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से प्रतिनिधि शामिल किए जा रहे हैं ताकि एकजुट भारत की तस्वीर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने रखी जा सके।

शशि थरूर, जो संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में गहरी समझ रखते हैं, इस डेलिगेशन के प्रमुख चेहरों में से एक होंगे। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने केंद्र सरकार की इस योजना पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया और न ही उन्होंने किसी सांसद का नाम भेजा था।

कांग्रेस प्रवक्ताओं का कहना है कि सरकार ने थरूर को "प्रतीकात्मक रूप से" शामिल किया है ताकि विपक्ष की सहमति का दिखावा किया जा सके। वहीं भाजपा का तर्क है कि राष्ट्रीय हित में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर योग्य और अनुभवी व्यक्तियों का चयन जरूरी था, और थरूर इस भूमिका के लिए उपयुक्त हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद भारत की विदेश नीति में एकता की जरूरत को दर्शाता है, लेकिन साथ ही यह भी बताता है कि राजनीतिक संवाद की कमी से अच्छे कदम भी संदेह के घेरे में आ सकते हैं।

अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि क्या थरूर इस मिशन को लेकर पार्टी लाइन से ऊपर जाकर राष्ट्रीय मंच पर सक्रिय भूमिका निभा पाएंगे या यह कदम सियासी तनाव को और बढ़ाएगा।

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