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Up Kiran, Digital Desk: अमेरिका और रूस के बीच जारी तनाव के बीच एक नया राजनीतिक कदम उठाया गया है, जो वैश्विक ऊर्जा व्यापार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर सकता है। अमेरिकी सीनेट में एक ऐसा प्रस्ताव रखा गया है, जिसमें रूस से व्यापार करने वाले देशों पर 500 प्रतिशत टैरिफ लगाने की बात कही गई है। इस बिल के तहत भारत और चीन भी शामिल हैं, जिन पर यह कड़ा आर्थिक दबाव बनाया जाना है।
इस बिल को अमेरिकी रिपब्लिकन सांसद लिंडसे ग्राहम ने पेश किया है और उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि यह उनके लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। ABC न्यूज को दिए गए अपने बयान में ग्राहम ने कहा कि इस विधेयक के जरिए उन देशों पर निशाना साधा जाएगा जो रूस से वस्तुएं खरीदकर यूक्रेन पर चल रहे युद्ध को समर्थन दे रहे हैं। उनके अनुसार, अगर कोई देश रूस से उत्पाद खरीद रहा है और यूक्रेन का समर्थन नहीं कर रहा, तो ऐसे देशों के उत्पादों पर अमेरिका में पांच गुना अधिक टैक्स लगेगा।
ग्राहम ने विशेष रूप से भारत और चीन का नाम लिया, यह कहते हुए कि ये दोनों देश पुतिन के तेल का लगभग 70 प्रतिशत आयात करते हैं और इस तरह वे रूस की युद्ध मशीन को सक्रिय रखने में मददगार साबित हो रहे हैं। उनकी इस टिप्पणी के साथ यह विवादित बिल ऐसे समय पर सामने आया है, जब भारत अमेरिका के साथ ट्रेड डील को अंतिम रूप देने के प्रयास में है।
पहली बार ट्रंप का समर्थन
इस बिल के पीछे ट्रंप प्रशासन की भी सहमति सामने आई है। ग्राहम ने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस विधेयक का समर्थन पहली बार किया है और उन्होंने कहा कि अब इसे आगे बढ़ाने का सही वक्त है। ग्राहम ने साझा किया कि जब ट्रंप गोल्फ खेल रहे थे, तभी उन्होंने ग्राहम को फोन कर कहा कि बिल को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। इस विधेयक के 84 सह-प्रायोजक हैं, जो इसे व्यापक राजनीतिक समर्थन देते हैं।
बिल का मकसद और प्रभाव
इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य भारत, चीन जैसे उन देशों पर दबाव डालना है जो रूस से तेल और अन्य सामग्रियां खरीदते हैं, ताकि रूस की आर्थिक स्थिति कमजोर हो और मॉस्को यूक्रेन संकट के समाधान के लिए शांति वार्ता को मजबूर हो सके। अगस्त में इस बिल को पेश किए जाने की संभावना है और यह अमेरिका की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों को और मजबूत करना चाहता है।
पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारत और चीन ने रूस से छूट वाले तेल का आयात जारी रखा है, जिसके कारण वे इस नए कानून के तहत अमेरिकी नीतियों के निशाने पर आ सकते हैं। यह बिल अमेरिकी सांसद ग्राहम और डेमोक्रेटिक सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथल द्वारा सह-प्रायोजित है। मार्च में इस प्रस्ताव को पहली बार पेश किया गया था, लेकिन वाइट हाउस की ओर से रोक के कारण इसे तब स्थगित कर दिया गया था। हालांकि, अब ट्रंप प्रशासन इसे समर्थन देने के लिए तैयार है।
संभावित परिणाम
यदि यह विधेयक अमेरिकी सीनेट से पारित हो जाता है, तो इसका भारत और चीन के साथ अमेरिका के व्यापारिक संबंधों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। भारत के लिए अमेरिका एक महत्वपूर्ण निर्यात बाजार है, और इस बिल के लागू होने से भारतीय निर्यात प्रभावित हो सकते हैं, जिससे दोनों देशों के आर्थिक और कूटनीतिक रिश्ते तनावग्रस्त हो सकते हैं। वहीं, भारत अपनी लगभग 40 प्रतिशत तेल जरूरतें रूस से पूरी करता है, इसलिए इस टैरिफ से देश को भारी आर्थिक झटका लग सकता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल से नवंबर 2024 के बीच भारत की 88 प्रतिशत तेल जरूरतों की पूर्ति आयात से हुई थी।
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