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लखनउ। वन निगम जूनियर सीनियर आफिसर्स एसोसिएशन, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष और महासचिव के पद पर नियुक्ति को लेकर संगठन में बवाल मचा हुआ है। निवर्तमान अध्यक्ष सुनील कुमार जैन के रिटायर होने के बाद व्हाट्सएप पर ही प्रभागीय लौंगिंग प्रबंधक, नजीराबाद, शिव कुमार मीणा को संगठन का अध्यक्ष बना दिया गया और महासचिव के पद पर प्रबंधक दविंदर सिंह को मनोनीत किया गया है। आपको बता दें कि दविंदर सिंह की भ्रष्टाचार के मामले में एंटी करप्शन की जांच चल रही है।

रमेश त्रिपाठी ने इस प्रकरण में फर्म सोसाइटी और चिट फंड्स के रजिस्ट्रार और उत्तर प्रदेश वन निगम के प्रबंध निदेशक को पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने कहा है कि असंवैधानिक प्रक्रिया के तहत वन निगम के जूनियर सीनियर आफिसर्स एसोसिएशन के महासचिव पद पर तैनात दविंदर सिंह आर्थिक अपराध शाखा के विजिलेंस जांच का सामना कर रहे हैं। इनकी शासन और वन निगम के स्तर पर भी अन्य जांचे चल रही हैं। अवैध रूप से दविंदर सिंह को महासचिव बनाया गया है। यहां तक कि चुनाव की सूचना रजिस्ट्रार कार्यालय को उपलब्ध नहीं है और न ही उक्त कार्यालय में बतौर अध्यक्ष इनका नाम दर्ज है।

रजिस्ट्रार कार्यालय के दस्तावेजों में अभी तक रिटायर सुनील कुमार जैन और यशपाल सिंह प्रभागीय विक्रय प्रबंधक लखीमुपर खीरी महामंत्री के पद पर विद्यमान हैं। यशपाल सिंह के इस्तीफा देने की सूचना सार्वजनिक तौर पर प्रसारित नहीं की गई है। इस तरह उनका इस्तीफा स्वीकार किए बिना ही मनमाने ढंग से शिव कुमार मीणा ने दविंदर सिंह की महासचिव के पद पर चयन कर लिया। शिव कुमार मीणा के भी अध्यक्ष चुने जाने को लेकर कोई प्रमाणिक दस्तावेज नहीं है। जिसमें उन्हें सर्व सहमति से अध्यक्ष बनाया गया हो। इसकी सूचना रजिस्ट्रार कार्यालय को भी नहीं भेजी गई है।

रमेश त्रिपाठी ने अपने शिकायती पत्र में अनुरोध किया है कि ऐसे में इन दोनों पदाधिकारियों की किसी भी काम को मान्यता न दी जाए और न ही उसे स्वीकार किया जाए, बल्कि उनके निर्णयों को रद्द माना जाए। अहम पदों पर चुनाव के पहले रजिस्ट्रार कार्यालय को इसकी सूचना दी जाती है। पर इस प्रकरण में ऐसा नहीं हुआ। 

प्रकरण को लेकर सुनील कुमार जैन से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि व्हाट्सप्प पर अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर चर्चा शुरू हुई थी और उस आवदेन भी मांगे गए थे। इस दौरान उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था। जिस कारण अध्यक्ष चुने जाने की विधिक प्रक्रिया  पूर्ण नहीं हो पायी थी। और न ही रजिस्ट्रार ऑफिस को इस संबंध कोई प्रस्ताव भेजा जा सका था। 

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