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साल 2022 में उजागर हुए बोकारो ज़मीन घोटाले की परतें अब और गहराती जा रही हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आज सवेरे बिहार और झारखंड में 15 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी कर सनसनी फैला दी। यह कार्रवाई मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत की गई है।

ईडी की टीम ने जिन जगहों पर दबिश दी, उनमें रांची के लालपुर, बरियातू और हटिया और बोकारो के कई इलाकों के साथ-साथ कंस्ट्रक्शन कंपनियों के दफ्तर और मालिकों के आवास भी शामिल हैं। जांच एजेंसी के रडार पर राजवीर कंस्ट्रक्शन और इसके प्रमोटर विमल अग्रवाल तथा पुनीत अग्रवाल जैसे नामी बिल्डर भी हैं।

क्या है घोटाले की असली कहानी?

साल 2022 में बोकारो वन प्रमंडल पदाधिकारी रजनीश कुमार ने एक बड़ी शिकायत दर्ज की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि वन विभाग की 74.38 एकड़ ज़मीन को फर्जी दस्तावेज़ों के ज़रिए निजी कंपनी को सौंप दिया गया।

शिकायत के अनुसार, यह घोटाला महेंद्र मिश्रा की मात्र 10 डिसमिल ज़मीन के कागजों में हेरफेर कर अंजाम दिया गया। फर्जी हस्ताक्षरों और जालसाजी के जरिए कागज़ों में यह ज़मीन 74.38 एकड़ दिखा दी गई।

जब महेंद्र मिश्रा को इस साजिश की भनक लगी, तो उन्होंने 2024 में इजहार हुसैन, अख्तर हुसैन, रहमत हुसैन, ललन सिंह और शैलेश सिंह के खिलाफ कोर्ट में मामला दर्ज कराया। साथ ही सेक्टर 12 में एक एफआईआर भी दायर की गई।

ईडी की छापेमारी का दायरा और मकसद

सूत्रों के मुताबिक, ईडी ने अपनी जांच में पाया है कि यह महज एक ज़मीन कब्जे का मामला नहीं, बल्कि बड़ी मनी लांड्रिंग स्कीम है।
यह आशंका जताई जा रही है कि फर्जीवाड़े से हड़पी गई जमीन पर कंस्ट्रक्शन कंपनियों ने न सिर्फ योजनाएं बनाई, बल्कि सरकारी अफसरों की मिलीभगत से मोटी रकम इधर-उधर की गई।

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