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Up Kiran, Digital Desk: डूसू यानी दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ के चुनाव 2025 में ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए तीन प्रमुख पदों पर जीत दर्ज की है। आर्यन मान को अध्यक्ष चुना गया है, जिन्होंने NSUI की जोसलिन नंदिता चौधरी को 16,196 वोटों से हराकर इतिहास रच दिया।

डूसू चुनाव का इतिहास: कब हुआ था पहला चुनाव?

डूसू की शुरुआत 1949 में हुई थी, लेकिन पहला चुनाव 1954 में हुआ था। गजराज बहादुर नागर डूसू के पहले अध्यक्ष बने थे। तब से अब तक यह चुनाव युवाओं के लिए एक बड़ी राजनीतिक सीढ़ी साबित हुआ है। अरुण जेटली, अजय माकन, विजय गोयल और अलका लांबा जैसे नामचीन नेताओं ने यहीं से अपने करियर की शुरुआत की थी।

डूसू अध्यक्ष को क्या-क्या मिलती हैं सुविधाएं?

डीयू का डूसू अध्यक्ष एक बेहद प्रभावशाली पद होता है। अध्यक्ष को न केवल विश्वविद्यालय के हर निर्णय में भागीदारी मिलती है, बल्कि एक अलग ऑफिस, निर्णयों में वोटिंग अधिकार, और प्रशासन से सीधा संवाद करने का मौका भी दिया जाता है।

फंडिंग और कार्यकाल:

अध्यक्ष को वेतन नहीं मिलता। लेकिन यूनियन को सालाना लगभग 20 लाख रुपये का फंड दिया जाता है। यह राशि सांस्कृतिक कार्यक्रम, रिसर्च और इवेंट्स पर खर्च होती है। सभी चार पदाधिकारियों (अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, संयुक्त सचिव) को लगभग 5-5 लाख का बजट मिलता है, जो एक कमेटी द्वारा नियंत्रित किया जाता है। कार्यकाल केवल 11 महीने का होता है, जिसके बाद अगले चुनाव जरूरी होते हैं।

क्यों खास होता है डूसू चुनाव?

डूसू चुनाव सिर्फ एक छात्र संघ का चुनाव नहीं होता, बल्कि यह राष्ट्रीय राजनीति का भविष्य तय करने वाला मंच बन चुका है। यहां से निकले छात्र नेता आगे चलकर संसद तक पहुंचते हैं। विश्वविद्यालय के 91 कॉलेजों से लाखों छात्र इस चुनाव में हिस्सा लेते हैं।

यह भी जानिए

अध्यक्ष छात्रों की समस्याएं यूनिवर्सिटी प्रशासन तक पहुंचाता है। वो किसी भी प्रशासनिक फैसले पर आपत्ति दर्ज कर सकता है। जरूरत पड़ने पर विश्वविद्यालय अधिकारियों के साथ बैठक कर समाधान निकालता है।