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Up Kiran, Digital Desk: रामसहायपट्टी प्राथमिक विद्यालय के मर्ज होने के फैसले ने ग्रामीणों के बीच असंतोष की लहर पैदा कर दी है। बुधवार को स्कूल के प्रांगण में बच्चों के माता-पिता और स्थानीय लोग एकत्रित होकर इस कदम के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन करते हुए अपनी आवाज बुलंद की। उनका मुख्य तर्क था कि स्कूल के बंद होने से बच्चों को शिक्षा के लिए कम से कम एक किलोमीटर दूर दूसरे स्कूल तक जाना पड़ रहा है, जो खासकर गरीब परिवारों के लिए बड़ी चुनौती है।
प्रदर्शनकारियों ने सरकार से अपील की कि रामसहायपट्टी स्कूल को फिर से संचालित किया जाए ताकि बच्चों को सुविधाजनक और सुरक्षित माध्यम से पढ़ाई मिल सके। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर उनकी मांगों को अनसुना किया गया तो वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला नहीं दिलाएंगे, जिससे शिक्षा तक पहुंच बाधित हो सकती है। इस आंदोलन में सौरभ यादव, संदीप यादव, रूपेश गौतम समेत कई ग्रामीण शामिल थे, जिन्होंने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया।
ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल की छात्रसंख्या कम होने के बावजूद उन्होंने मिलकर इसे बढ़ाने का पूरा प्रयास करने को तैयार हैं। उनका मानना है कि शिक्षा के रास्ते में दूरी की बाधा बच्चों के भविष्य को प्रभावित कर सकती है, इसलिए स्थानीय स्कूलों को चालू रखना बेहद जरूरी है।
दूसरी ओर, खंड शिक्षा अधिकारी अजीत कुमार सिंह ने इस मामले पर कहा कि सरकार ने कम संख्या वाले स्कूलों को मर्ज करने का फैसला प्रशासनिक और शैक्षिक स्तर पर बेहतर प्रबंधन के लिए लिया है। उनका कहना था कि जिन स्कूलों को मर्ज किया गया है, वे पहले से ही कम छात्रों वाले और सुविधाओं में कमजोर थे, जबकि जिन स्कूलों में इन छात्रों को भेजा जा रहा है, वहां विद्यार्थियों की संख्या रोजाना बढ़ रही है। उन्होंने इस कदम को गुणवत्ता शिक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक जरूरी कदम बताया।
हालांकि, ग्रामीणों की चिंता भी वाजिब नजर आती है क्योंकि मर्जर से बच्चों की पढ़ाई में आने वाली असुविधा और सुरक्षा को लेकर स्थानीय स्तर पर चर्चा चल रही है। इस स्थिति को देखते हुए दोनों पक्षों के बीच संवाद और समझौते की आवश्यकता महसूस की जा रही है, ताकि शिक्षा व्यवस्था सभी बच्चों के लिए सुगम और प्रभावी बनी रहे।
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