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Up Kiran, Digital Desk: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को जैन समुदाय के सदस्यों को कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया, जो उनके पवित्र पर्व पर्युषण के दौरान शहर की वधशालाओं (कसाईखानों) को 10 दिनों के लिए बंद रखने की मांग कर रहे थे। मुख्य न्यायाधीश आलोक अर्धे और न्यायाधीश संदीप मार्ने की खंडपीठ ने समुदाय की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की बात कही, लेकिन साथ ही यह भी सवाल उठाया कि वे वधशालाओं को इतने लंबे समय तक बंद रखने का अधिकार कहाँ से प्राप्त करते हैं।

याचिकाकर्ताओं ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के आयुक्त द्वारा 14 अगस्त को पारित उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें वधशालाओं को केवल दो दिनों के लिए बंद रखने की अनुमति दी गई थी। बीएमसी प्रमुख ने अपने निर्णय के पीछे शहर में जैन समुदाय की कम आबादी का तर्क दिया था।

अदालत का रुख: भावनाओं से परे, कानून की मांग

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को कोई राहत न देते हुए स्पष्ट किया कि उनके द्वारा ऐसा कोई मामला नहीं बनाया गया है जिसके आधार पर 10 दिन के प्रतिबंध का आदेश दिया जा सके। खंडपीठ ने पूछा, “हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं। लेकिन हमें बताएं कि आप वधशालाओं को 10 दिनों तक बंद रखने का अधिकार कहाँ से प्राप्त करते हैं? आप मैंडामस (Mandamus - परमादेश) की मांग कर रहे हैं। इसके लिए, कानून में एक प्रावधान होना चाहिए। कानून कहाँ है? यह कहाँ लिखा है कि वधशालाओं को 10 दिनों के लिए बंद रखा जाना चाहिए?”। अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी भी समुदाय की भावनाओं के आधार पर, बिना किसी कानूनी आधार के ऐसा आदेश जारी नहीं किया जा सकता।

बीएमसी का आदेश और समुदाय की दलीलें

बीएमसी ने पर्युषण पर्व के दौरान केवल दो दिन - 24 अगस्त और 27 अगस्त (गणेश चतुर्थी के दिन) - वधशालाओं को बंद रखने का आदेश दिया था वहीं, जैन समुदाय के सदस्यों ने अपने सबसे पवित्र माने जाने वाले पर्युषण पर्व के दौरान अहिंसा और आध्यात्मिक शुद्धि के महत्व को देखते हुए 10 दिनों तक वधशालाएं बंद रखने की मांग की थी। उन्होंने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें अहमदाबाद में जैन पर्व के दौरान वधशालाओं को बंद रखने के फैसले को बरकरार रखा गया था, और तर्क दिया था कि मुंबई में जैन आबादी अहमदाबाद से अधिक है।

कानूनी ढांचे का महत्व

हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पर्युषण पर्व जैसे धार्मिक त्यौहारों के दौरान वधशालाओं को बंद रखने के लिए कानूनी वैधता (statutory backing) का होना आवश्यक है। बिना किसी कानूनी अधिकार या प्रावधान के, अदालत ऐसे आदेश जारी नहीं कर सकती। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक मान्यताओं का सम्मान सर्वोपरि है, लेकिन किसी भी मांग को लागू करवाने के लिए कानूनी ढांचे का होना अनिवार्य है

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