
Up Kiran, Digital Desk: पेट में दर्द है, शायद पीरियड आने वाला है," "गैस बन रही होगी," "लगता है पाचन में कोई गड़बड़ है।" - ये कुछ ऐसी बातें हैं जो महिलाएं पेट के निचले हिस्से में दर्द होने पर अक्सर सोचती हैं। लेकिन क्या आप जानती हैं कि यह दर्द किसी आम समस्या का नहीं, बल्कि हर्निया का संकेत हो सकता है?
हर्निया को ज़्यादातर "मर्दों की समस्या" माना जाता है, लेकिन यह सच नहीं है। महिलाओं को भी हर्निया होता है, पर उनके लक्षण इतने घुले-मिले होते हैं कि अक्सर उन्हें माहवारी के दर्द, पेट फूलने, या पाचन की गड़बड़ समझ लिया जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि बीमारी का पता तब चलता है, जब आंतों के फंसने जैसी गंभीर नौबत आ जाती है। इसलिए, इसके शुरुआती संकेतों को जानना हर महिला के लिए बेहद ज़रूरी है।
महिलाओं में आम हैं ये दो तरह के हर्निया
महिलाओं में मुख्य रूप से फिमोरल और अम्बिलिकल हर्निया देखे जाते हैं।
फिमोरल हर्निया: यह जांघ के ऊपरी हिस्से में होता है और अगर इसका इलाज न किया जाए तो यह ख़तरनाक हो सकता है।
अम्बिलिकल हर्निया: यह नाभि के आसपास होता है।
मुंबई के प्रसिद्ध अस्पतालों में लैप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. अपर्णा गोविल भास्कर बताती हैं कि जब पेट की मांसपेशियाँ कमज़ोर हो जाती हैं, तो अंदरूनी अंग या टिश्यू उस कमज़ोर जगह से बाहर की ओर धकेलने लगते हैं, जिससे हर्निया बन जाता है। मांसपेशियों की यह कमज़ोरी प्रेग्नेंसी, मोटापा, लगातार खाँसने, लंबे समय तक कब्ज़ रहने या भारी वज़न उठाने से हो सकती है।
महिलाएं क्यों करती हैं इन संकेतों को नज़रअंदाज़?
पुरुषों की तरह महिलाओं में हर्निया का लक्षण हमेशा एक साफ़ उभार या गांठ के रूप में नहीं दिखता। इसके बजाय, उन्हें ये समस्याएं हो सकती हैं:
पेट के निचले हिस्से में हल्का-हल्का दर्द।
दबाव या भारीपन महसूस होना।
पेट फूलना या बेचैनी होना। ये लक्षण इतने आम हैं कि इन्हें आसानी से PCOS, एंडोमेट्रियोसिस, या बदहज़मी मान लिया जाता है। भारत में यह समस्या और भी गंभीर है, क्योंकि यहाँ महिलाएं अक्सर परिवार की देखभाल में अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना भूल जाती हैं। अम्बिलिकल हर्निया अक्सर प्रेग्नेंसी के बाद होता है, लेकिन नई माँ बच्चे और घर की ज़िम्मेदारियों में इतनी उलझी रहती है कि वे डॉक्टर के पास जाने में देरी कर देती हैं।
कब ज़रूरी हो जाती है सर्जरी?हर्निया का इलाज किसी भी दवा से नहीं हो सकता, इसके लिए सर्जरी ही एकमात्र रास्ता है। यहाँ तक कि अगर हर्निया में कोई जटिलता नहीं है, तब भी डॉक्टर सर्जरी की सलाह देते हैं ताकि भविष्य में कोई ख़तरा न हो।
सर्जरी क्यों और कब ज़रूरी है:
इन्कारसेरेशन (Incarceration): जब कोई टिश्यू या आंत का हिस्सा पेट की दीवार में फँस जाता है। अगर इसका इलाज न हो, तो यह स्ट्रांग्युलेशन का रूप ले लेता है।
स्ट्रांग्युलेशन (Strangulation): यह एक इमरजेंसी है, जिसमें फँसे हुए हिस्से तक ख़ून की सप्लाई बंद हो जाती है। इससे वह हिस्सा हमेशा के लिए ख़राब हो सकता है और यह जानलेवा भी हो सकता है। अगर आपको तेज़ दर्द, बुख़ार हो, या हर्निया की सूजन का रंग गहरा, लाल या बैंगनी हो जाए, तो तुरंत अस्पताल जाएँ।
अगर हर्निया का आकार बढ़ रहा हो या उसमें दर्द और बेचैनी हो रही हो।
क्या है इसका इलाज?सर्जरी हर्निया का सबसे असरदार इलाज है। आजकल इसे मिनिमली इनवेसिव (कम चीर-फाड़ वाली) लैप्रोस्कोपिक तकनीक से किया जाता है, जिससे मरीज़ जल्दी ठीक होता है और जटिलताएँ भी कम होती हैं।
ओपन सर्जरी: इसमें हर्निया के ऊपर एक चीरा लगाकर उसे अंदर किया जाता है और फिर मांसपेशियों को टांके लगाकर बंद कर दिया जाता है। अक्सर दोबारा हर्निया न हो, इसके लिए एक जाली (Mesh) भी लगाई जाती है।
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी: इसमें पेट पर छोटे-छोटे कट लगाकर एक कैमरा और दूसरे उपकरण डाले जाते हैं। बेहतर तरीक़े से देखने के लिए पेट में गैस भरी जाती है। इसमें भी सपोर्ट के लिए जाली का इस्तेमाल किया जाता है।
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में दर्द कम होता है, रिकवरी तेज़ी से होती है और ज़्यादातर लोग एक हफ़्ते के अंदर अपने सामान्य कामकाज पर लौट सकते हैं।
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