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Up Kiran, Digital Desk: अमेरिका की ओर से भारतीय सामानों पर आयात शुल्क बढ़ाए जाने की तैयारी ने देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की चिंता बढ़ा दी है। लेकिन इस चुनौती से निपटने के लिए भारत अब रणनीतिक विकल्पों पर काम कर रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकार और उद्योग जगत का फोकस अब नए बाजारों की ओर बढ़ रहा है, खासकर यूके जैसे देशों पर जहां हालिया मुक्त व्यापार समझौता (FTA) के चलते संभावनाएं बेहतर दिख रही हैं।
छोटे कारोबारों पर सबसे बड़ी मार
क्रिसिल इंटेलिजेंस द्वारा बुधवार को जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के कुल निर्यात में करीब 45% योगदान देने वाले एमएसएमई सेक्टर को अमेरिकी टैरिफ का सबसे ज्यादा नुकसान होगा। अमेरिका पहले ही भारतीय उत्पादों पर 25% शुल्क लगा रहा है और अब 27 अगस्त से इसे और 25% बढ़ाने की योजना है। यानी भारतीय वस्तुओं पर कुल मिलाकर 50% तक टैक्स लग सकता है, जो उन्हें अमेरिकी बाजार में कम प्रतिस्पर्धी बना देगा।
किन उद्योगों पर गिरेगा सीधा असर?
रिपोर्ट में कहा गया है कि कपड़ा, सीफूड, रत्न एवं आभूषण जैसे क्षेत्रों पर इस टैरिफ का असर सबसे ज़्यादा होगा। गौरतलब है कि अमेरिका को भारत के इन क्षेत्रों से होने वाले कुल निर्यात में 25% हिस्सा है और इनमें से अधिकतर उत्पादन छोटे और मझोले उद्योगों से होता है। उदाहरण के लिए, हीरा उद्योग में सूरत स्थित MSME की हिस्सेदारी 80% से ज्यादा है और उन्हें इस टैरिफ का सीधा झटका झेलना पड़ेगा।
एमएसएमई पहले से ही कम मार्जिन पर काम कर रहे हैं और अब बढ़ी हुई लागत को झेलना उनके लिए बेहद कठिन होगा। क्रिसिल के निदेशक पुशन शर्मा के अनुसार, लागत का एक हिस्सा उन्हें खुद वहन करना पड़ेगा, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धा क्षमता पर असर पड़ेगा।
यूके में दिख रहा है राहत का रास्ता
इसी पृष्ठभूमि में भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता एमएसएमई के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरा है। क्रिसिल इंटेलिजेंस की एसोसिएट डायरेक्टर एलिजाबेथ मास्टर बताती हैं कि यह समझौता खास तौर पर कपड़ा, आभूषण, समुद्री उत्पाद, चमड़ा और दवा उद्योग के लिए लाभकारी हो सकता है। भले ही इनमें से अधिकांश उत्पाद अभी यूके के कुल आयात में 3% से भी कम हिस्सेदारी रखते हों, लेकिन यह समझौता भारत को बांग्लादेश, तुर्की और कंबोडिया जैसे प्रतिस्पर्धियों के सामने बेहतर स्थिति में ला सकता है।
कहां असर सीमित रहेगा?
ऑटो पार्ट्स सेक्टर को इस टैरिफ से कुछ हद तक राहत है, क्योंकि अमेरिका इस उद्योग के भारतीय उत्पादन में मात्र 3.5% की हिस्सेदारी रखता है। इसी तरह, फार्मास्यूटिकल उत्पाद अभी तक अमेरिकी शुल्क से बचे हुए हैं, जबकि यह भारत के दवा निर्यात का 12% हिस्सा हैं। इस क्षेत्र में फिलहाल राहत बनी हुई है।
स्टील क्षेत्र की बात करें तो, MSME का योगदान मुख्य रूप से री-रोलिंग और लंबी वस्तुओं के निर्माण तक सीमित है, इसलिए इस पर अमेरिकी शुल्क का असर नाममात्र का ही होगा।
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