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Up Kiran, Digital Desk: कश्मीर आज़ भी अपनी सुंदरता और प्रकृति की बेमिसाल छवि के लिए जाना जाता है। लेकिन बैसरन में हुए आतंकी हमले के बाद सुरक्षा की दृष्टि से कई पर्यटन स्थलों को बंद कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि उन पर्यटन स्थलों पर निर्भर हजारों परिवार अचानक बेरोज़गारी और संकट की गिरफ्त में आ गए हैं। युसमर्ग इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
युसमर्ग के घोड़े वालों की पीड़ा
बडगाम जिले में स्थित युसमर्ग कश्मीर का एक सुरम्य पर्यटन स्थल है, जहां हर साल हज़ारों पर्यटक आते हैं और स्थानीय लोग अपनी रोज़ी-रोटी कमाते हैं। यहां लगभग 1500 परिवार ऐसे हैं, जो पर्यटकों को घुड़सवारी कराकर अपना जीवनयापन करते थे। लेकिन पिछले तीन महीनों से यह काम पूरी तरह ठप पड़ा हुआ है।
जावेद अहमद खारी, जो एक पंजीकृत पर्यटक गाइड और घोड़े वाले हैं, अपने बीमार घोड़े के साथ राजभवन पहुंचे ताकि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से मिलकर अपनी व्यथा सुना सकें। जावेद कहते हैं—
"हमारे पास खाने के लिए रोटी और घोड़ों के लिए चारे तक का अभाव हो गया है। पर्यटक बंद हैं, तो हमारी आजीविका का रास्ता भी पूरी तरह बंद हो गया।"
सिर्फ इंसान नहीं, जानवर भी भूख से जूझ रहे हैं
युसमर्ग के इन परिवारों के लिए घोड़े ही उनकी रोज़गार की रीढ़ हैं। लेकिन जब काम ही नहीं है तो इन जानवरों के लिए चारा जुटाना भी मुश्किल हो गया है। जावेद ने कहा कि वो अपने घोड़े की हालत उपराज्यपाल को दिखाना चाहते थे, ताकि शायद जानवरों की दुर्दशा ही सरकार को झकझोर दे।
परिवार और जिम्मेदारियों का बोझ
जावेद जैसे कई लोग सिर्फ अपनी आजीविका ही नहीं, बल्कि परिवार की जिम्मेदारियों से भी दबे हुए हैं। पिता की दवा से लेकर बच्चों की पढ़ाई तक—हर जरूरत उनके कंधों पर है। जब आय का कोई साधन न हो, तो उनकी स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
सामूहिक संघर्ष की चेतावनी
जावेद अहमद खारी ही अकेले नहीं हैं। उनके साथ बड़गाम के दूधपथरी से ताल्लुक रखने वाले इंजीनियर नज़ीर अहमद यत्तु भी शामिल हुए। उन्होंने एक पोस्टर उठाकर सरकार से मांग की कि बंद पड़े पर्यटन स्थलों को तुरंत खोला जाए। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर हालात में सुधार हो चुका है, तो फिर पर्यटन पर लगी पाबंदी जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है।
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