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Up Kiran, Digital Desk: नगरपालिका चुनावों से पहले उल्हासनगर की राजनीति में एक बड़ा भूचाल आ गया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को यहाँ उस वक्त तगड़ा झटका लगा जब उसके पाँच अनुभवी पूर्व पार्षदों ने पार्टी से किनारा कर लिया और सीधे महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना में शामिल हो गए।

राजनीति के गलियारों में यह खबर आग की तरह फैल गई है। शिंदे की मौजूदगी में भगवा खेमे को अलविदा कहने वाले इन नेताओं में जम्नू पुरसवानी, प्रकाश माखीजा, महेश सुखरामानी, किशोर वनवारी और मीना सोनदे जैसे कद्दावर नाम शामिल हैं।

असंतोष की जड़: 'मनमानी' और उपेक्षा

इन नेताओं के सामूहिक इस्तीफे की वजह चौंकाने वाली है। उन्होंने खुलकर राज्य भाजपा अध्यक्ष रविंद्र चव्हाण की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। अंदरूनी सूत्रों और सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, इन वरिष्ठ नेताओं का आरोप है कि पार्टी में मनमाने फैसले लिए जा रहे थे। पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं को लगातार नज़रअंदाज़ किया जा रहा था। उनका साफ कहना था कि राज्य नेतृत्व और स्थानीय संगठन के बीच तालमेल पूरी तरह खत्म हो चुका था, जिसने संगठन में भारी नाराज़गी पैदा की।

पूर्व पार्षदों ने दर्द बयाँ करते हुए बताया कि उन्होंने बार-बार स्थानीय समस्याओं और पार्टी कार्यकर्ताओं की चिंताओं को सामने रखा, मगर उनकी बातों को हमेशा अनसुना कर दिया गया। किसी भी शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

1984 से जुड़े पुरसवानी की कसक

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे महत्वपूर्ण नाम जम्नू पुरसवानी का है। वह पाँच बार पार्षद रह चुके हैं और उल्हासनगर में सिंधी समुदाय के सबसे प्रभावशाली चेहरों में गिने जाते हैं। पुरसवानी ने कहा कि 1984 से भाजपा में सक्रिय रहने के बावजूद उनकी बरसों से लंबित शिकायतें कभी नहीं सुनी गईं। उन्होंने सत्रह साल तक नगर निगम में भाजपा के गुट नेता के रूप में काम किया और दो बार जिला अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाली, लेकिन जब शीर्ष नेताओं ने उनकी चिंताओं पर कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया, तो उनके पास पार्टी छोड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा।

30 करोड़ के विकास फंड पर राजनीति का साया

पार्टी छोड़ने वाले नेताओं ने एक और गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि 2023 में विधायक को आवंटित तीस करोड़ रुपये की विकास निधि का उपयोग नहीं हो सका। उनका आरोप है कि यह फंड चव्हाण के फैसलों के चलते अटका रहा, जिससे शहर के कई विकास कार्य रुक गए। इस गतिरोध ने आम नागरिकों और ज़मीनी कार्यकर्ताओं में भी भारी रोष पैदा कर दिया था।