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Up Kiran, Digital Desk: भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को लेकर जब भी बात होती है, टैरिफ की चर्चा अहम हो जाती है। हाल ही में, अमेरिका द्वारा भारत पर 50% तक टैरिफ लगाए जाने के बाद पूर्व भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) गवर्नर रघुराम राजन ने इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त की। उनका मानना है कि भारत को अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता के दौरान 10-20% तक के टैरिफ के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, और ऐसी कोई भी प्रतिबद्धता नहीं करनी चाहिए, जिसे पूरा करना कठिन हो।

टैरिफ पर स्पष्ट दिशा-निर्देश

रघुराम राजन ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि यदि टैरिफ की दर शून्य हो तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सर्वोत्तम होगा। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जबकि विकसित देशों ने अपने टैरिफ दरों को बहुत कम कर लिया है, भारत की प्राथमिकता को ध्यान में रखते हुए, यह जरूरी है कि हम पूर्वी और दक्षिण एशिया के अन्य देशों से प्रतिस्पर्धी बने रहें। ऐसे में, अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता में भारत के लिए 10-20% तक के टैरिफ की सीमा उपयुक्त होगी।

आर्थिक बोझ से बचने की सलाह

रघुराम राजन ने उदाहरण के तौर पर जापान और यूरोप जैसे देशों की स्थिति को बताया, जहां अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के बाद, टैरिफ दरों को 15-19% तक रखा गया। राजन के अनुसार, भारत को भी इस सीमा के भीतर अपनी स्थिति बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए। साथ ही, उन्होंने यह चेतावनी दी कि व्यापार वार्ता में ऐसे वादे न किए जाएं जो भारतीय अर्थव्यवस्था पर बोझ डाल सकते हैं। उनका मानना है कि किसी भी व्यापारिक समझौते को इस तरह से तैयार करना चाहिए कि वह देश की मौजूदा स्थिति को नुकसान न पहुंचाए।

ग्लोबल सप्लाई चेन में प्रतिस्पर्धा बनाए रखना जरूरी

भारत के लिए यह भी बेहद जरूरी है कि वह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति बनाए रखे। रघुराम राजन ने कहा कि भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके टैरिफ दरों में कमी लाई जाए, खासतौर पर उन क्षेत्रों में जहां भारत के श्रम-प्रधान उद्योग, जैसे टेक्सटाइल, प्रमुख हैं। यह कदम भारत को दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया में अपने प्रतिस्पर्धियों से एक कदम आगे रखने में मदद करेगा।

जापान और यूरोप के अनुभव से सीखें

पूर्व RBI गवर्नर ने जापान और यूरोपीय देशों के अनुभवों का हवाला देते हुए एक महत्वपूर्ण सलाह दी। उन्होंने कहा कि व्यापार समझौते के दौरान कोई भी ऐसा वादा नहीं करना चाहिए, जिसे पूरा करना मुश्किल हो। राजन ने स्पष्ट किया कि जापान और यूरोपीय देशों ने अमेरिका से बड़े वादे किए थे, लेकिन इन वादों को पूरा करने में उनकी अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान हो सकता है, और इसीलिए उन्हें सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए।

संभावित जोखिमों से बचने की चेतावनी

रघुराम राजन ने यह भी कहा कि कुछ देश वर्तमान प्रशासन के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, भविष्य में फिर से पुनः विचार करने की उम्मीद कर रहे होंगे। हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के शॉर्ट-टर्म रणनीतिक कदम जोखिम भरे हो सकते हैं। उन्हें लगता है कि यदि कोई देश समझौते के बाद फिर से वार्ता की कोशिश करता है, तो उसे इससे बचने की जरूरत है, क्योंकि ऐसा करना दीर्घकालिक फायदे के लिए सही नहीं होगा।