Up kiran,Digital Desk : राजस्थान में सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे लाखों युवाओं के सपनों को बेचने वाले एक और बड़े खिलाड़ी को स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) ने धर दबोचा है। इस बार पकड़ा गया है वनरक्षक भर्ती पेपर लीक कांड का अहम किरदार केडी डॉन, जिसने पूरी चालाकी से प्रिंटिंग प्रेस से पेपर चुराया और लाखों रुपये में बेच दिया।
SOG ने केडी डॉन उर्फ खिलान सिंह को मध्य प्रदेश के भोपाल से गिरफ्तार किया है। उसी प्रिंटिंग प्रेस से, जहां वनरक्षक भर्ती परीक्षा-2020 का पेपर छपा था। चलिए, आपको बताते हैं कि कैसे इस शातिर गैंग ने इस पूरे कांड को अंजाम दिया।
कैसे लीक हुआ पेपर?
यह कहानी किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं है। केडी डॉन भोपाल की रुचि प्रिंटिंग प्रेस में बाइंडिंग का काम करता था। उसने वहीं के कुछ और कर्मचारियों के साथ मिलकर एक फुलप्रूफ प्लान बनाया।
- पहले पेपर को 'गंदा' किया: गैंग ने सबसे पहले पेपर की उन शीटों को निशाना बनाया, जिन्हें उन्हें चुराना था। उन्होंने जानबूझकर उन शीटों को गंदा कर दिया।
- 'नष्ट' करने वाले बॉक्स में डाला: प्रिंटिंग का नियम है कि गंदी या खराब शीट को इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि उसे नष्ट करने वाले बॉक्स में डाल दिया जाता है। इन लोगों ने भी वही किया।
- असली की जगह नकली रखा: इसके बाद सबसे बड़ा खेल हुआ। गैंग ने नष्ट किए जाने वाले बॉक्स में से चुपके से असली पेपर की शीट निकाल ली और उसकी जगह कोई दूसरा रद्दी पेपर डाल दिया, ताकि गिनती में कोई गड़बड़ न हो।
- प्रेस से बाहर भेजा: इस तरह असली पेपर बिना किसी को शक हुए प्रिंटिंग प्रेस से बाहर आ गया और सीधा पहुंच गया लीक करने वालों के सरगना के पास।
किसने और कितने में खरीदा पेपर?
इस पूरे खेल का खुलासा तब हुआ जब SOG ने 50 हजार के इनामी बदमाश और पेपर लीक के मुख्य आरोपी जबरा राम जाट को पकड़ा। जबरा राम ने ही पूछताछ में केडी डॉन का नाम उगला था।
केडी डॉन ने कबूल किया है कि उसने वनरक्षक भर्ती परीक्षा की दोनों पारियों के पेपर चुराकर जबरा राम जाट को 23 लाख रुपये में बेचे थे। यह रकम उसे कैश और ऑनलाइन, दोनों तरीकों से किस्तों में मिली थी।
SOG के ADG विशाल बंसल ने बताया कि केडी डॉन ने प्रेस के कुछ और कर्मचारियों के नाम भी बताए हैं, जो इस साजिश में शामिल थे। SOG की टीमें अब उन सभी की तलाश कर रही हैं। यह गिरफ्तारी एक बड़ा सबूत है कि पेपर लीक कोई छोटी-मोटी गलती नहीं, बल्कि एक संगठित और गहरी साजिश थी, जिसकी जड़ें अब धीरे-धीरे खुल रही हैं।
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