(पवन सिंह)
दुनिया की सभी बड़ी सभ्यताएं नदियों के किनारे विकसित हुईं और अंततः उन्हीं नदियों के साथ सारी सभ्यताएं मोक्ष को प्राप्त हुईं। विश्व की तमाम नदियां अपने साथ जीवन और उस जीवन को जीने लायक संसाधन लाईं और जलवायु परिवर्तन व अन्य आर्थिक व सामाजिक कारणों से वही सभ्यताएं नदियों द्वारा विकसित किए गये भू-भाग में ही जमींदोज हो गईं। एक बार फिर से हम सब उसी दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हिमालय के ग्लैशियरों के साथ स्प्रीचुवल टूरिज्म के नाम पर हमने जो भौंडापन आरंभ किया है, इसके नतीजे हमें विनाश तक ले जायेंगे..!! गंगोत्री-यमुनोत्री के ग्लैशियरों सहित संपूर्ण हिमालियन रेंज के ग्लैशियरों का तेजी से पिघलना व पीछे खिसकते जाना खतरनाक संकेत हैं। अगर समय रहते हमने हिमालय रेंज को प्रकति के हवाले नहीं किया तो भारत की जीवन दायिनी नदियां एक दिन हमें इतिहास बना देंगी। यह सच जितनी जल्दी समझ आ जाए उतना अच्छा है।
दुनिया की अनेक मानव सभ्यताएं जैसे-
सिंधु घाटी सभ्यता,नील नदी घाटी सभ्यता, पीली नदी घाटी सभ्यता, मेसोपोटामिया नदी घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यताएं...इन सबको नदियों ने जन्म दिया और फिर नदियों ने ही खत्म कर दिया।
विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता मिश्र की सभ्यता मानी जाती है। यह नील नदी के आसपास विकसित हुई। मेसोपोटामिया की सभ्यता: मेसोपोटामियन सभ्यता 3000 से 600 ई. पू. के मध्य की है...इन्हे नदियों ने विकसित किया। मेसोपोटामिया एक प्राचीन ग्रीक शब्द "मेसो" है..इसका अर्थ है बीच में या मध्य में और "पोटामोस" का अर्थ है नदी....यानी 'नदियों के बीच की भूमि'। इसके अलावा बेबीलोन की सभ्यता, सिंधु घाटी की सभ्यता, इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है...भारत में अन्य नदियों ने जैसै सरस्वती, नर्मदा, ताप्ती, गंगा आदि नदियों ने भी अपने-अपने भू-भाग में मानवीय सभ्यताओं का विकास किया लेकिन भारत की अधिकांश बड़ी नदियों के अस्तित्व पर अब खतरा मंडराने लगा है। हिमालियन रेंज अनेक ग्लैशियरों का घर है इसमें से सियाचिन ग्लेशियर पृथ्वी पर दूसरा सबसे बड़ा गैर-ध्रुवीय ग्लेशियर है। भारत के 90% ग्लेशियर लद्दाख, हिमाचल प्रदेश , सिक्किम और उत्तराखंड में हैं और कुछ अरूणांचल प्रदेश में भी हैं। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा सूचीबद्ध भारतीय हिमालयन क्षेत्र के 9575 ग्लेशियरों में से केवल 25 ग्लैशियरों का ही ग्राउंड डेटा उपलब्ध है। दुनिया भर में करीब 1 लाख 98 हज़ार ग्लेशियर हैं और इनमें से लगभग साढ़े 9 हज़ार केवल हमारे देश में हैं। मानवीय हस्तक्षेप और ग्लोबल वार्मिंग से भारत की दो बड़ी नदियों गंगा व यमुना का अस्तित्व खतरे में है। मिजोरम विश्वविद्यालय, आइजोल के प्रोफेसर विश्वंभर प्रसाद सती और सुरजीत बनर्जी विगत 32 सालों पर इन ग्लैशियरों पर अध्ययन कर रहे हैं। इन दोनों ही वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय तीव्र परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। यहां बर्फ की मोटी परत कमजोर हो रही है और बर्फ के टुकड़ों का विखंडन एक गंभीर चिंता का विषय हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री, मिलम और पिंडारी जैसे ग्लेशियर लगातार कमजोर होते जा हैं। यहां ग्लेशियर पीछे तो हट ही रहे हैं, इसके साथ ही इनकी मोटाई भी कम हो रही है। मोटी बर्फ का क्षेत्र 10,768 वर्ग किलोमीटर से घटकर अब केवल 3,258.6 वर्ग किलोमीटर रह गया, जो एक खतरनाक कमी को दर्शाता है। दुर्भाग्यवश हम ऐसे देश में हैं जहां पर्यावरण और विज्ञान पर बात करना या तो मूर्खता है या अपराध। अशिक्षित और पर्यावरण के प्रति घोर असंवेदनशील नेतृत्व ने इन दोनों ही नदियों के भविष्य को ही दांव पर लगा दिया है।
ये हिमशिखर और ग्लैशियर केवल नदियों को ही जीवित नहीं रखें हुए हैं बल्कि सूर्य की अतिरिक्त गर्मी या उसकी ऊष्मा को वापस अंतरिक्ष में भेजकर सम्पूर्ण पृथ्वी और महासागरों की रक्षा भी कर रहे हैं लेकिन हमने पागलपन और जाहिलियत की हदें पार करते हुए हिमालय के इस पूरे इलाके को स्प्रीचुवल टूरिज्म की मूर्खताओं में धकेल दिया है। इस देश की 90% जनता को पर्यावरण से वैसे भी कोई लेना देना नहीं है.. गर्मियां आ रही हैं और लोग भेड़ों की तरह मुंह उठाकर हिमालय में मोक्ष पाने और सेल्फ़ी लेने.."..दर्शन पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ" लिखने के लिए चल पड़ेंगे। जबकि, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, गंगा के पानी का तापमान लगातार बढ़ रहा है तथा गर्मियों में जब तापमान अधिक रहता है तो प्रवाह तेज़ रहता है और सर्दियों में तापमान घटने के साथ ही प्रवाह भी कम हो जाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड CPCB की बायोलॉजिकल हेल्थ ऑफ रिवर गंगा नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि औसत तापमान में लगभग एक डिग्री तक की वृद्धि से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ी है। अध्ययन से पता चला है कि अब हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार दोगुनी हो गई है। यह आँकड़ा वर्ष 1975 से वर्ष 2000 तक ग्लेशियरों के पिघलने की मात्रा का दोगुना है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भले ही आने वाले दशकों में दुनिया ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश लगा ले, लेकिन दुनिया के शेष ग्लेशियरों का एक तिहाई से अधिक हिस्सा वर्ष 2100 से पहले पिघल जाएगा। हिमालियन ग्लैशियर 2 हज़ार किलोमीटर तक फैले हैं और करीब 600 बिलियन टन बर्फ को सहेजे हुए हैं। ये सभी हिमालयन ग्लेशियर करीब 800 मिलियन लोगों के लिये सिंचाई, जलविद्युत और पीने के पानी के स्रोत हैं। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले करीब 750 मिलियन से अधिक लोगों के जीवन का आधार हैं।
हिमालय स्थित गंगोत्री ग्लेशियर इस क्षेत्र का सबसे बड़ा ग्लेशियर है और गंगा नदी का जन्मदाता है। यह ग्लैशियर कमजोर हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष, 1900 के बाद से पूरे विश्व के ग्लैशियर तेजी से पिघल रहे हैं और इसका सबसे बड़ा कारण मानवीय हस्तक्षेप है। अगर यही हाल रहा तो वर्ष श, 2040 की गर्मियों तक आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ देखने को नहीं मिलेगी।
वैश्विक समुद्री स्तर 0.13 इंच की दर से बढ़ रहा है इसकी वज़ह से कम ऊँचाई पर बसे द्वीपों और तटीय शहरों के डूबने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
फिलहाल जो हालात हैं उसके अनुसार गंगा नदी पर आने वाले 50 सालों में विलुप्त हो जाने का खतरा मंडरा रहा है ओर इसका परिणाम यह होगा कि करीब 45 करोड़ से अधिक लोग मारे जायेंगे। ये चेतावनी राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के वैज्ञानिक और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विज्ञान और प्रोद्योगिकी केंद्र के संस्थापक प्रो. बीडी त्रिपाठी ने दी है। श्री त्रिपाठी ने प्रदूषण की वजह से 50 साल में गंगा के विलुप्त होने का खतरा बताया है।
फिलहाल, कुंभ, महाकुंभ और स्नान करके मोक्ष प्राप्त तो आप तभी तक करेंगे जब तक गंगा है...!!!