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नई दिल्ली—वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में लगातार दूसरे दिन सुनवाई जारी रही। बुधवार को प्रारंभ हुई इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा था। गुरुवार को कोर्ट अंतरिम आदेश पारित कर सकता है, जिसमें वक्फ संपत्तियों के डि-नोटिफिकेशन, जांच के दौरान नए प्रावधानों की अनुपस्थिति और वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति जैसे मुद्दों पर निर्देश दिए जा सकते हैं।

वक्फ अधिनियम के खिलाफ 72 याचिकाएं, कोर्ट ने जताई चिंता

सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ—मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन—ने वक्फ संशोधन अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली 72 याचिकाओं पर सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन और सी. यू. सिंह ने दलीलें दीं, वहीं केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नया कानून मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, और इसके तहत मुसलमानों के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर सीधा हस्तक्षेप किया जा रहा है। उनके मुताबिक, वक्फ की परंपरा और व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।

गैर-मुस्लिमों की वक्फ बोर्ड में एंट्री पर सुप्रीम कोर्ट का सवाल

सबसे अहम विवाद का बिंदु यह रहा कि नए कानून में वक्फ बोर्ड और काउंसिल में गैर-मुस्लिमों को सदस्य बनाए जाने का प्रावधान क्यों किया गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि यदि मुस्लिमों को मंदिर बोर्डों में शामिल नहीं किया जाता, तो फिर वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति का औचित्य क्या है?

सॉलिसिटर जनरल ने सफाई दी कि वक्फ काउंसिल में दो से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे, और वे भी पदेन सदस्य होंगे। उन्होंने अदालत में हलफनामा दायर करने की बात कही। लेकिन पीठ ने तर्क दिया कि नए कानून के अनुसार केंद्रीय वक्फ परिषद के 22 में से केवल आठ सदस्य मुस्लिम होंगे। ऐसे में, धार्मिक चरित्र की संस्था में गैर-मुस्लिम बहुमत कैसे स्वीकार्य हो सकता है?

वक्फ बाय यूज़र और डि-नोटिफिकेशन पर भी सवाल

कपिल सिब्बल ने यह सवाल उठाया कि जब 300 साल पहले की मस्जिदों के पास आज डीड या दस्तावेज मौजूद नहीं होते, तो ‘वक्फ बाय यूज़र’ की अवधारणा क्यों हटाई गई? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि इन संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने का क्या आधार है? इस पर केंद्र की ओर से कहा गया कि जो संपत्तियाँ रजिस्टर्ड वक्फ हैं, वे वक्फ रहेंगी, लेकिन बाकी संपत्तियों की जांच कलेक्टर करेगा और उन्हीं को वक्फ माना जाएगा जो जांच में सही साबित होंगी।

पीठ ने यह भी पूछा कि जब किसी संपत्ति को पहले ही कोर्ट ने वक्फ घोषित किया है, तो क्या नए कानून के तहत उसे गैर-अधिसूचित किया जा सकता है? इस पर भी केंद्र को स्पष्टता लाने के निर्देश दिए गए।

कोर्ट ने जताई गंभीर चिंता, अंतरिम आदेश पर विचार

सुनवाई के दौरान पीठ ने साफ कहा कि आम तौर पर कोर्ट किसी कानून के प्रारंभिक चरण में हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन इस मामले में अपवाद हो सकता है क्योंकि इससे समुदाय विशेष के अधिकारों पर असर पड़ सकता है। कोर्ट ने संकेत दिया कि वक्फ से संबंधित कुछ संपत्तियों पर लागू नए प्रावधानों को स्थगित किया जा सकता है जब तक कलेक्टर यह न तय कर ले कि संबंधित जमीन सरकारी है या नहीं।

विधिक बहस के बीच तीखी नोकझोंक भी

सुनवाई के दौरान पीठ और सॉलिसिटर जनरल के बीच बहस तब तीखी हो गई जब कोर्ट ने पूछा कि वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिमों की मौजूदगी किस न्यायिक और सांस्कृतिक तर्क से उचित है। कोर्ट का मानना है कि वक्फ एक धार्मिक संस्था है और उसमें बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम सदस्यों की मौजूदगी उसके धार्मिक स्वरूप को प्रभावित कर सकती है।

अगली सुनवाई में आएगा अंतरिम आदेश?

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि मामले की सुनवाई को आवश्यकता अनुसार रोजाना के आधार पर किया जा सकता है। सॉलिसिटर जनरल ने समय मांगा ताकि केंद्र अपना पक्ष पूरी तरह रख सके। अगली सुनवाई में अदालत अंतरिम आदेश जारी कर सकती है, जो वक्फ संशोधन कानून के कई अहम प्रावधानों पर अस्थायी रोक लगा सकता है।

यह मामला केवल कानूनी या धार्मिक बहस नहीं है, बल्कि संविधान, धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों से भी जुड़ा है। आगे की सुनवाई यह तय करेगी कि इस कानून का भविष्य क्या होगा और इसका असर किस हद तक मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक संरचना पर पड़ेगा।