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Illegal Liquor Seizure: सीएम नीतीश कुमार ने 2015 में शराबबंदी को एक क्रांतिकारी कदम बताते हुए इसे लागू किया था। उनका दावा था कि ये फैसला समाज को नशे की लत से मुक्त करेगा और परिवारों को टूटने से बचाएगा। लेकिन लगभग एक दशक बाद ये कानून मजाक बनकर रह गया है।

मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में अवैध शराब की बिक्री और होम डिलीवरी फल-फूल रही है। तो वहीं पुलिस की सख्ती और छापेमारी सिर्फ कागजी दिखावा साबित हो रही है। हाल की दो घटनाओं ने इस हकीकत को फिर से उजागर किया है कि शराब तस्कर न सिर्फ सक्रिय हैं, बल्कि उनका नेटवर्क कानून की नाक के नीचे चुनौती दे रहा है।

बीते हफ्ते अहियापुर थाना क्षेत्र में पुलिस ने एक ई-रिक्शा को रोका, जिसमें 196 बोतल अवैध शराब भरी थी। तीन तस्करों को हिरासत में लिया गया, लेकिन ये घटना सिर्फ हिमशैल का सिरा थी।

उसी दिन पारू थाना क्षेत्र में एक ट्रक की तलाशी के दौरान केबिन में बने गुप्त तहखाने से लाखों रुपये की विदेशी शराब बरामद हुई। ये केस बताते हैं कि तस्कर अब छोटे वाहनों से लेकर बड़े ट्रकों तक, हर तरीके से शराब की सप्लाई चला रहे हैं। एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "तस्करों ने तकनीक और तरकीबें बदल ली हैं। हम पकड़ते हैं, पर उनका नेटवर्क टूटता नहीं।"

शराब की हो रही है होम डिलीवरी

नीतीश कुमार की शराबबंदी का मकसद बिहार को नशामुक्त बनाना था, लेकिन जमीनी हकीकत उल्टी तस्वीर पेश करती है। मुजफ्फरपुर, वैशाली, पटना और सीवान जैसे जिलों में शराब की होम डिलीवरी आम बात हो गई है।

 

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