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Up Kiran, Digital Desk: करीब दो दशक के लंबे इंतजार के बाद मालेगांव बम धमाके मामले में आखिरकार स्पेशल एनआईए कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। अदालत ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल पुरोहित, रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी और सुधाकर द्विवेदी समेत सभी पर लगाए गए आरोपों से उन्हें मुक्त कर दिया है। जज एके लाहोटी ने अपनी सुनवाई में स्पष्ट किया कि मामले में जांच एजेंसियों ने ऐसा कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किया, जिससे आरोप सिद्ध हो सकें।
जनता के लिए राहत या नए सवाल?
यह फैसला एक तरफ जहां कुछ लोगों के लिए न्याय का प्रतीक है, वहीं कई सवाल अब भी अनसुलझे ही रह गए हैं। अदालत ने बरीत के पीछे उन अहम सबूतों की कमी को बताया, जिनकी वजह से आरोपियों को दोषी साबित नहीं किया जा सका। खास बात यह है कि अदालत ने इस केस में आतंकवाद के लिए किसी भी धर्म को जिम्मेदार ठहराने से साफ इनकार किया।
जांच एजेंसियों के सामने 7 अहम दुविधाएं
न्यायालय ने जिन सात प्रमुख बिंदुओं पर जांच का अभाव बताया है, वे इस प्रकार हैं:
साजिश की बैठक का अभाव: धमाके की साजिश के पीछे हुई कथित बैठकों का कोई प्रमाण नहीं मिला।
स्पॉट पंचनामा में खामियां: मौके पर बने पंचनामे की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए क्योंकि कई सबूत केवल बयानबाजी पर आधारित थे।
बाइक का मालिकाना संबंध: यह साबित नहीं हो पाया कि बाइक वास्तव में साध्वी प्रज्ञा की थी।
RDX और बम निर्माण: आरोप था कि कर्नल पुरोहित ने विस्फोटक सामग्री मालेगांव लाकर बम तैयार किया था, लेकिन इसका कोई ठोस सबूत नहीं मिला।
बम लगाने वाला कौन था?: मस्जिद के पास बम किसने रखा, इस सवाल का जवाब नहीं मिला।
धमाके की जगह पर संशय: यह साफ नहीं हो पाया कि विस्फोट बाइक पर ही हुआ था या कहीं और।
बाइक लगाने वाले की पहचान: धमाके में इस्तेमाल बाइक लगाने वाले की पुष्टि नहीं हो सकी।
साध्वी प्रज्ञा के पक्ष में अदालत की दलीलें
अदालत ने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि बाइक के चेसिस नंबर और उससे जुड़े दस्तावेज जांच में कभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुए। साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ कोई ठोस योजना या साजिश रचने का प्रमाण भी नहीं पाया गया, खासकर क्योंकि वे धमाके से दो साल पहले ही संन्यास ले चुकी थीं।
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