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Up Kiran, Digital Desk: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जो अक्सर अपने फैसलों की दृढ़ता और बयानों की तल्ख़ी के लिए जाने जाते हैं इस बार पूरी ताकत झोंक चुके हैं। रूस और यूक्रेन के बीच लगातार धधक रही जंग की लपटें अब ट्रंप के दरवाज़े तक पहुँच चुकी हैं  और वह हर हाल में इस आग को बुझाना चाहते हैं। उनके मुताबिक "अब बहुत हो चुका है।" मगर दूसरी ओर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जिनकी आंखों में अक्सर अडिग सत्ता और इतिहास का जुनून चमकता है अपने रुख से टस से मस नहीं हो रहे।

व्हाइट हाउस की ठंडी दीवारों के भीतर से उठी यह चेतावनी पुतिन के कानों तक गरज की तरह पहुंची  "अगर तुम हमारी बात नहीं मानते तो समझो तुम आग से खेल रहे हो।" ट्रंप की आवाज़ में वह गुस्सा साफ झलक रहा था जो सिर्फ सत्ता नहीं बल्कि संभावित तबाही की आशंका से उपजा था। मगर पुतिन ने भी इतिहास से सीखा है कि झुकना उनकी शैली नहीं। जवाब में उनकी ओर से आया एक और बयान, कहा अगर दबाव डाला गया तो तीसरे विश्व युद्ध के लिए तैयार रहो।

आज की तारीख में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक स्तर पर सब कुछ 'ठीक' दिखता है मगर सतह के नीचे एक भीषण तूफान आकार ले रहा है। ऐसे में सवाल है  अगर तीसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तो क्या दुनिया उसे रोक पाएगी।

कैसे रोका जा सकता है तीसरा विश्व युद्ध

दुनिया युद्ध की कीमत अच्छी तरह समझ चुकी है। बिखरे शहर उजड़े परिवार और राख में बदलते सपने  यही होती है युद्ध की असली तस्वीर। इसी त्रासदी को दोहराने से रोकने के लिए आज भी कई अंतरराष्ट्रीय संगठन और देश मिलकर काम कर रहे हैं जिनका मकसद केवल कागजों पर शांति लिखना नहीं बल्कि हथियारों की गरज को बातचीत में बदल देना है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) जैसी संस्थाएं इसी मकसद के लिए खड़ी की गई थीं  कि दुनिया फिर किसी हिरोशिमा या बर्लिन की यादों में न सिसके। ये संस्थाएं संघर्षों को न्याय संवाद और समझौतों के जरिए सुलझाने का प्रयास करती हैं।

यूएन की वजह से ही आज कोई भी देश दूसरे पर हमले से पहले दुनिया की नजरों से बच नहीं सकता। वहीं अंतरराष्ट्रीय न्यायालय राष्ट्रों को यह एहसास दिलाता है कि कानून के बिना दुनिया सिर्फ एक जंगल है।

कैसे रुका था दूसरा विश्व युद्ध: इतिहास की राख से सबक

1940 के दशक में जब दुनिया धधक रही थी तब शांति एक दूर का सपना लगती थी। पर अंततः उसे हासिल किया गया  त्याग समझदारी और कठोर फैसलों के दम पर।

8 मई 1945 को जब जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण किया तो सिर्फ एक युद्ध खत्म नहीं हुआ  यूरोप ने अपनी सांस वापस पाई। बर्लिन की गलियों में रूसी टैंकों की गड़गड़ाहट के बीच हिटलर का आत्महत्या करना एक युग का अंत बन गया। पर कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।

6 और 9 अगस्त को जब अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए तो इंसानियत ने पहली बार महसूस किया कि प्रगति के नाम पर विनाश कितना भयावह हो सकता है। लाखों मासूम चीखें राख में बदलते चेहरे और जीवन भर जलती यादें  यही थे उन धमाकों के परिणाम।

2 सितंबर 1945 को जब जापान ने औपचारिक आत्मसमर्पण पत्र पर हस्ताक्षर किए तो दुनिया की आंखें नम थीं  काश यह शांति पहले आ गई होती।

इन्हीं खून से लथपथ पन्नों पर लिखी गई थी संयुक्त राष्ट्र की कहानी  जो आज भी युद्ध रोकने की अंतिम आशा बनी हुई है।

 

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