
life after death: मौत हमेशा से मानव जीवन का सबसे बड़ा रहस्य रही है। अलग अलग धर्मों में ये माना जाता है कि शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर रहती है। हिंदू धर्म में आत्मा की गति को तीन प्रमुख स्वरूपों में बांटा गया है- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। ये रूप व्यक्ति के कर्म, इच्छाओं और दिमागी स्थितियों के आधार पर तय होते हैं।
जीवात्मा वो आत्मा होती है जो मौत के बाद पुनर्जन्म के चक्र से बाहर निकलने की कोशिश करती है। ये आत्मा अगले जन्म में प्रवेश करने की प्रक्रिया में होती है और कर्मों के मुताबिक पुनर्जन्म प्राप्त करती है। यदि इंसान अपने जीवन में अच्छे कर्म करता है और धर्म का पालन करता है, तो उसकी आत्मा धीरे-धीरे संसार के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की ओर बढ़ती है।
प्रेतात्मा- जिसकी मृत्यु अचानक होती है या जो अपनी इच्छाएँ अधूरी छोड़कर जाता है, वो आत्मा प्रेत योनि में चली जाती है और तब तक भटकती रहती है जब तक उसे शांति नहीं मिल जाती। अत्यधिक मोह, क्रोध, वासना या किसी प्रकार की बुरी ऊर्जा आत्मा को बांधे रखती है।
सूक्ष्मात्मा वो होती है जो मरने के बाद एक सूक्ष्म रूप में बनी रहती है और अपने पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर पुनर्जन्म की दिशा में आगे बढ़ती है। यह आत्मा किसी भी स्थूल (भौतिक) रूप में नहीं होती, मगर ऊर्जा के रूप में विद्यमान रहती है।
मरने के बाद ऐसे बनते हैं भूत
हिंदू मान्यताओं में ये कहा गया है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में आत्मा भूत बन सकती है। ये तब होता है जब आत्मा को शांति नहीं मिलती और वह किसी स्थान या व्यक्ति से जुड़ी रहती है। तो वहीं श्राद्ध और पिंडदान करने से आत्मा को मुक्ति मिलती है।
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