
Up Kiran, Digital Desk: भारत में अक्सर पैरेंट्स छोटे भाई-बहन को बड़े भाई-बहन के कपड़े पहना दिया करते हैं। बड़े होकर भी लोग कम पैसे खर्च करने के चक्कर में सेकंड हैंड कपड़े खरीद लेते हैं। इसके अलावा किसी शादी में या फिर ईवेंट में भी लोग पैसे बचाने के लिए सेकंड हैंड कपड़े पहन ही लेते हैं। अगर आप भी सेकंड हैंड कपड़े पहनते हैं, तो आपको समय रहते सावधान हो जाना चाहिए। आइए जानते हैं कि सेकंड हैंड कपड़े पहनने की वजह से एक शख्स का क्या हाल हो गया...
सेकंड हैंड कपड़े पहनकर पछताया शख्स
हाल ही में सोशल मीडिया पर इस शख्स के बारे में खूब चर्चा हो रही है, जिसने सेकंड हैंड स्टोर से कपड़े खरीदकर पहने। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सेकंड हैंड कपड़े पहनने की वजह से शख्स को वायरल स्किन इंफेक्शन हो गया। एक वायरल वीडियो में इस शख्स ने बताया कि सेकंड हैंड कपड़े पहनने से उसे मोलस्कम कॉन्टैगिओसम, एक तरह का वायरल स्किन इंफेक्शन हो गया।
खतरनाक स्किन इंफेक्शन
इस स्किन इंफेक्शन की वजह से त्वचा पर छोटे और उभरे हुए दाने निकल आते हैं। इस इंफेक्शन की वजह से आपके चेहरे की खूबसूरती बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस समस्या को ठीक होने में 6 महीने से 2 साल तक का समय लग सकता है। अगर आप इस इंफेक्शन की चपेट में आने से बचना चाहते हैं, तो आपको सेकंड हैंड कपड़े पहनना बंद कर देना चाहिए।
सेकंड हैंड कपड़े पहनने के साइड इफेक्ट्स
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक सेकंड हैंड कपड़े पहनने से बैक्टीरिया, फंगस, पैरासिटिक और वायरल इंफेक्शन हो सकता है। इसके अलावा सेकंड हैंड कपड़े पहनने की वजह से त्वचा को इरिटेशन, रेडनेस और खुजली जैसी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। अगर आप अपनी त्वचा की सेहत को बिगड़ने से बचाना चाहते हैं, तो आपको सेकंड हैंड कपड़े नहीं पहनने चाहिए।भारत में अक्सर पैरेंट्स छोटे भाई-बहन को बड़े भाई-बहन के कपड़े पहना दिया करते हैं। बड़े होकर भी लोग कम पैसे खर्च करने के चक्कर में सेकंड हैंड कपड़े खरीद लेते हैं। इसके अलावा किसी शादी में या फिर ईवेंट में भी लोग पैसे बचाने के लिए सेकंड हैंड कपड़े पहन ही लेते हैं। अगर आप भी सेकंड हैंड कपड़े पहनते हैं, तो आपको समय रहते सावधान हो जाना चाहिए। आइए जानते हैं कि सेकंड हैंड कपड़े पहनने की वजह से एक शख्स का क्या हाल हो गया...
सेकंड हैंड कपड़े पहनकर पछताया शख्स
हाल ही में सोशल मीडिया पर इस शख्स के बारे में खूब चर्चा हो रही है, जिसने सेकंड हैंड स्टोर से कपड़े खरीदकर पहने। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सेकंड हैंड कपड़े पहनने की वजह से शख्स को वायरल स्किन इंफेक्शन हो गया। एक वायरल वीडियो में इस शख्स ने बताया कि सेकंड हैंड कपड़े पहनने से उसे मोलस्कम कॉन्टैगिओसम, एक तरह का वायरल स्किन इंफेक्शन हो गया।
खतरनाक स्किन इंफेक्शन
इस स्किन इंफेक्शन की वजह से त्वचा पर छोटे और उभरे हुए दाने निकल आते हैं। इस इंफेक्शन की वजह से आपके चेहरे की खूबसूरती बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस समस्या को ठीक होने में 6 महीने से 2 साल तक का समय लग सकता है। अगर आप इस इंफेक्शन की चपेट में आने से बचना चाहते हैं, तो आपको सेकंड हैंड कपड़े पहनना बंद कर देना चाहिए।
सेकंड हैंड कपड़े पहनने के साइड इफेक्ट्स
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक सेकंड हैंड कपड़े पहनने से बैक्टीरिया, फंगस, पैरासिटिक और वायरल इंफेक्शन हो सकता है। इसके अलावा सेकंड हैंड कपड़े पहनने की वजह से त्वचा को इरिटेशन, रेडनेस और खुजली जैसी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। अगर आप अपनी त्वचा की सेहत को बिगड़ने से बचाना चाहते हैं, तो आपको सेकंड हैंड कपड़े नहीं पहनने चाहिए।मां बनना किसी भी महिला के जीवन का सबसे खूबसूरत और भावनात्मक अनुभव होता है। एक नई जिंदगी को अपने भीतर पालना, उसे हर धड़कन के साथ महसूस करना और उसका आगमन देखने की लालसा, एक ऐसी भावना है जिसे शब्दों में पिरोना मुश्किल है। लेकिन कई बार यह सपना अधूरा रह जाता है, खासकर तब जब शुरुआती तीन महीनों में गर्भपात (मिसकैरेज) की आशंका बढ़ जाती है।
गर्भावस्था के ये पहले तीन महीने बेहद नाजुक होते हैं। इन महीनों में भ्रूण का विकास प्रारंभिक चरण में होता है और कई बार छोटे-छोटे कारण भी मिसकैरेज का कारण बन जाते हैं। कई महिलाओं को यह जानकारी नहीं होती कि वे किन बातों का ध्यान रखें और क्या न करें, जिससे बच्चा सुरक्षित रहे।
मिसकैरेज क्या है और क्यों होता है?
मिसकैरेज, यानी गर्भावस्था के दौरान भ्रूण का स्वत: गर्भाशय से निकल जाना, एक ऐसा अनुभव है जो महिला के शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालता है। यह ज्यादातर पहले 12 हफ्तों के भीतर होता है और इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:
1. जेनेटिक असामान्यता
अक्सर भ्रूण के गुणसूत्रों में विकृति होने पर शरीर उसे स्वाभाविक रूप से बाहर कर देता है।
2. हार्मोनल असंतुलन
PCOD, थायरॉयड या प्रोजेस्टेरोन की कमी जैसी समस्याएं गर्भपात की संभावना बढ़ा देती हैं।
3. यूटेरस में समस्या
अगर गर्भाशय में फाइब्रॉइड (रसोली), पोलीप्स या कोई संरचनात्मक असामान्यता है, तो भ्रूण को विकसित होने में कठिनाई हो सकती है।
4. इंफेक्शन
रूबेला, CMV या यूरिनरी इंफेक्शन जैसे संक्रमण भ्रूण के लिए खतरनाक हो सकते हैं।
5. क्रॉनिक बीमारियां
डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, थायरॉयड जैसी पुरानी बीमारियां भी गर्भधारण में बाधा बनती हैं।
6. अनहेल्दी लाइफस्टाइल
स्मोकिंग, शराब, ज्यादा कॉफी पीना, तनाव में रहना और अनहेल्दी खान-पान से भी गर्भपात हो सकता है।
7. शारीरिक थकान और ओवर वेट/अंडर वेट होना
बहुत ज्यादा वज़न या बेहद कम वज़न होना गर्भ को खतरे में डाल सकता है।
8. बिना डॉक्टर की सलाह के दवाइयां लेना
कुछ दवाएं भ्रूण के विकास को प्रभावित करती हैं और मिसकैरेज का कारण बन सकती हैं।
मिसकैरेज के लक्षण क्या हैं?
यदि आप गर्भवती हैं और नीचे दिए गए किसी भी लक्षण का अनुभव कर रही हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें:
तेज बुखार
निचले पेट में लगातार दर्द या ऐंठन
पीठ में भारी दर्द
योनि से रक्तस्राव या डिस्चार्ज
चक्कर आना या बेहोश होना
अत्यधिक उल्टी
यह संकेत गर्भ में किसी गड़बड़ी का इशारा हो सकते हैं, इसलिए इन्हें नजरअंदाज ना करें।
मिसकैरेज से बचने के लिए करें ये जरूरी उपाय
गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. मीरा बताती हैं कि मिसकैरेज से बचना पूरी तरह संभव है यदि शुरुआती 3 महीनों में कुछ सावधानियों को सख्ती से अपनाया जाए।
1. समय पर डॉक्टर से संपर्क करें
जैसे ही आपको गर्भवती होने का पता चले, अपने डॉक्टर से मिलें। वो आपको फोलिक एसिड, जरूरी विटामिन्स और जरूरी टेस्ट्स की सलाह देंगे।
2. अपनी जीवनशैली सुधारें
सिगरेट, शराब और अधिक कैफीन (कॉफी, कोल्ड ड्रिंक) का सेवन तुरंत बंद करें।
पका हुआ भोजन लें, कच्चा मीट, अनानास, पपीता आदि से परहेज करें।
ज्यादा मसालेदार और जंक फूड से बचें।
3. शारीरिक गतिविधि और आराम में संतुलन बनाएं
भारी सामान न उठाएं, पोंछा न लगाएं, ज्यादा देर खड़े या बैठे न रहें।
रोज़ाना टहलें लेकिन अत्यधिक थकान न होने दें।
पूरी नींद लें – रात में 8 घंटे और दिन में 1-2 घंटे विश्राम करें।
4. मेडिटेशन और तनाव प्रबंधन
रोज़ाना कम से कम 15-20 मिनट ध्यान करें। यह मानसिक शांति देगा और हार्मोनल बैलेंस बनाए रखेगा।
अनावश्यक चिंता या डर से खुद को दूर रखें।
5. संतुलित और रंगीन भोजन करें
आपकी प्लेट में कम से कम 5 रंग जरूर हों:
सफेद: दूध, दही, पनीर
लाल: टमाटर, सेब, चुकंदर
हरा: हरी सब्जियां, धनिया, पालक
पीला: नींबू, केला
नारंगी: गाजर, पपीता
6. डॉक्टर से समय-समय पर चेकअप कराएं हर महीने एक बार अल्ट्रासाउंड और ज़रूरी टेस्ट कराएं ताकि मां और बच्चे दोनों की स्थिति स्पष्ट रहे।
7. पहले तीन महीनों में इंटरकोर्स से बचें
यह भ्रूण के लिए जोखिम भरा हो सकता है, खासकर अगर आपकी प्रेगनेंसी हाई रिस्क है।
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