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Up Kiran, Digital Desk: सनातन धर्म में मृत्यु के बाद आत्मा के शांति और मोक्ष के लिए कई महत्वपूर्ण कर्मकांड किए जाते हैं जिनमें शय्या दान एक प्रमुख और धार्मिक महत्व का कार्य माना जाता है। शय्या दान का उद्देश्य मृतक की आत्मा की यात्रा को सुखमय और शांति प्रदान करना है ताकि उसे प्रेत योनि से मुक्ति मिल सके। इस परंपरा का पालन गरुड़ पुराण में किया गया है जिसमें कहा गया है कि शय्या दान मृत्यु के बाद आत्मा के लिए बहुत लाभकारी होता है।
शय्या दान: एक धार्मिक अनुष्ठान
गरुड़ पुराण के अनुसार शय्या दान मुख्यतः मृत्यु के 11वें (एकादशाह) और 12वें (द्वादशाह) दिन किया जाता है। इस दौरान शय्या दान करने से मृतक की आत्मा को यमदूतों की प्रताड़ना से मुक्ति मिलती है और उसे सुखपूर्वक विश्राम करने का अवसर मिलता है। इस कर्मकांड के बाद मृतक की आत्मा को मोक्ष प्राप्ति की दिशा में एक कदम आगे बढ़ने का मौका मिलता है।
पुण्य लाभ और शांति का महत्व
मान्यता है कि शय्या दान करने वाले व्यक्ति को पुण्य लाभ प्राप्त होता है। इसके अनुसार वह व्यक्ति स्वर्ग में हजारों वर्षों तक सुख भोगता है। इस दान को न केवल मृतक के प्रति श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है बल्कि यह एक आत्मिक कर्तव्य की पूर्ति भी होती है।
यह दान मृतक के शांति और मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण है जबकि यह जीवित व्यक्ति के लिए भी एक पुण्यकारी कार्य साबित होता है। मृतक के शरीर का अंतिम संस्कार केवल एक शारीरिक कार्य होता है जबकि आत्मा के लिए यह दान एक अत्यंत आवश्यक कदम है।
शय्या दान का तरीका
शय्या दान करने के लिए एक लकड़ी की चौकी चारपाई या पलंग को उत्तर दिशा में सिरहाना और दक्षिण दिशा में पैर रखते हुए रखा जाता है। इस पर विशेष रूप से कुछ धार्मिक और विधिक वस्तुएं रखी जाती हैं:
कलश स्थापना: शय्या के नीचे ईशान कोण (पूर्व-उत्तर) में गाय के घी से भरा कलश रखा जाता है। अन्य दिशाओं में भी कलश स्थापित किए जाते हैं जैसे-
अग्निकोण में कुमकुम से भरा कलश
नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में गेहूं से भरा कलश
वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में जल से भरा कलश
सिरहाने की ओर घी से भरा 'निद्रा कलश' रखा जाता है।
अन्य वस्तुएं: शय्या पर मृतक के जीवन में उपयोग की गई वस्तुएं जैसे कपड़े बर्तन वाहन पुस्तकें श्रृंगार सामग्री माला जप माला धोती गमछा भोजन के बर्तन आदि रखे जाते हैं। साथ ही मृतक की प्रिय वस्तुएं और सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज) भी शय्या पर रखे जाते हैं।
शय्या दान की विधि
शय्या दान की प्रक्रिया शुद्ध विधि से होनी चाहिए। दानकर्ता को हाथ जोड़कर शय्या की प्रदक्षिणा करनी चाहिए और “प्रमाण्यै देव्यै नम:” का उच्चारण करना चाहिए। दान स्वीकार करने वाले ब्राह्मण को “स्वस्ति” बोलते रहना चाहिए जो वायु देव की पत्नी मानी जाती हैं। यदि यह विधि ठीक से न की जाए तो शय्या दान निष्फल हो सकता है।
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