
Up Kiran, Digital Desk: कर्नाटक, जो भारत में नारियल उत्पादन में एक प्रमुख राज्य है, वहाँ एक बड़ी पर्यावरणीय और आर्थिक चुनौती सामने आई है। राज्य में उत्पादित होने वाले नारियल के छिलके का केवल 30% ही उपयोग किया जा रहा है, जिसका अर्थ है कि 70% विशाल मात्रा में बेकार पड़ा रहता है। यह न केवल एक महत्वपूर्ण आर्थिक अवसर की बर्बादी है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी एक गंभीर चिंता का विषय है।
नारियल का छिलका, जिसे 'कॉयर' (coir) के रूप में जाना जाता है, एक बहुमुखी प्राकृतिक रेशा है। इसका उपयोग कई मूल्य वर्धित उत्पादों, जैसे कि रस्सी, मैट, ब्रश, भू-वस्त्र (भू-कपड़ा) और जैविक खाद बनाने में किया जा सकता है। यह कॉयर उद्योग को बढ़ावा दे सकता है, जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करता है।
वर्तमान में, अनुपयोगी नारियल के छिलके का ढेर प्रदूषण और कचरा प्रबंधन की समस्या को बढ़ाता है। यह या तो जला दिया जाता है, जिससे वायु प्रदूषण होता है, या इसे यूं ही पड़ा रहने दिया जाता है, जो लैंडफिल पर बोझ बढ़ाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस विशाल अपशिष्ट को एक संसाधन में बदलने के लिए सरकार, उद्योग और किसानों के बीच समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। बेहतर प्रसंस्करण तकनीकों, जागरूकता और बाजार पहुंच से नारियल के छिलके का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है।
यह कदम न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा, बल्कि सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देगा। 70% नारियल के छिलके का बेकार पड़ा रहना एक छिपे हुए 'हरे सोने' की बर्बादी है जिसे अब भुनाया जाना चाहिए।
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