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हर साल हजारों श्रद्धालु कैलाश मानसरोवर यात्रा पर निकलते हैं, लेकिन इस साल, 30 जून 2025 से यह पावन यात्रा एक नए जोश और उमंग के साथ शुरू होने जा रही है। यात्रा का मुख्य आकर्षण कैलाश पर्वत के दर्शन के साथ ही दो रहस्यमयी झीलें — मानसरोवर झील और राक्षस ताल — हैं। ये दोनों झीलें भले ही केवल 2 से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हों और समान ऊंचाई व वातावरण में हों, लेकिन इनके स्वभाव और प्रभाव में गहरा अंतर है। आइए, इस यात्रा के दौरान अनुभव होने वाली इन दो झीलों के बीच के रहस्यों और अंतर को गहराई से समझते हैं।

मानसरोवर झील: आस्था और शांति का प्रतीक

मानसरोवर झील को हिंदू और बौद्ध धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह झील भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी हुई है। श्रद्धालु यहां स्नान करते हैं, जल पीते हैं और ध्यान साधना करते हैं। मानसरोवर का पानी बेहद स्वच्छ, शांत और मन को सुकून देने वाला होता है। ऐसा माना जाता है कि यहां का जल पापों का नाश कर मोक्ष प्रदान करता है। यही कारण है कि मानसरोवर यात्रा के दौरान इस झील के दर्शन को सबसे पवित्र कार्यों में गिना जाता है।

राक्षस ताल: रहस्यों से भरी अशांत झील

मानसरोवर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित राक्षस ताल का वातावरण एकदम अलग है। इसे तिब्बती भाषा में 'ल्हानाग त्सो' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'अंधकार की झील'। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यह झील रावण से जुड़ी है, जिसने यहां तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास किया था। राक्षस ताल का पानी अशांत, गहरा और भयावह लगता है। स्थानीय लोग इसे अशुभ मानते हैं और इसके पास जाने से भी कतराते हैं।

बौद्ध और हिंदू दृष्टिकोण से तुलना

बौद्ध धर्म: बौद्ध धर्म में मानसरोवर को प्रकाश और राक्षस ताल को अंधकार का प्रतीक माना जाता है।

हिंदू धर्म: हिंदू ग्रंथों में मानसरोवर को दैवीय शक्ति का केन्द्र और राक्षस ताल को आसुरी शक्तियों का वास बताया गया है।

भौगोलिक समानता, लेकिन स्वभाव में अंतर

यह बात सभी के लिए चौंकाने वाली है कि एक ही क्षेत्र में, एक जैसी ऊंचाई और मौसम की परिस्थितियों के बावजूद, इन दोनों झीलों के जल, रंग और प्रभाव में इतना अंतर क्यों है। वैज्ञानिक आज तक इस रहस्य को पूरी तरह से सुलझा नहीं पाए हैं। मानसरोवर झील का पानी मीठा और शांत है, जबकि राक्षस ताल का पानी खारा और अशांत है।

रावण और राक्षस ताल का रहस्यमयी संबंध

हिंदू मान्यता के अनुसार, रावण ने राक्षस ताल के जल में स्नान कर भगवान शिव की तपस्या की थी। कहा जाता है कि रावण की कठोर साधना और उसकी नकारात्मक ऊर्जा ने इस झील को अशुभ और नकारात्मक बना दिया। इस वजह से ही इसे ‘राक्षस ताल’ या ‘रावण ताल’ कहा जाने लगा।

राक्षस ताल में द्वीपों की उपस्थिति

जहां मानसरोवर झील पूरी तरह से जलमग्न और द्वीप रहित है, वहीं राक्षस ताल में डोला, दोशारबा और लचाटो जैसे छोटे द्वीप भी पाए जाते हैं। ये द्वीप भी राक्षस ताल की रहस्यमयी प्रकृति को और गहरा बना देते हैं। स्थानीय कहानियों में इन द्वीपों को रहस्यमयी शक्तियों का निवास स्थान भी बताया गया है।

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