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Up Kiran, Digital Desk: ढोल-ताशों की गूंजती आवाज़, जगमगाते पंडाल और भावनाओं से भरे जुलूस—गणेशोत्सव का नज़ारा ही अलग होता है। यह उत्सव सिर्फ भारत तक सीमित नहीं, बल्कि समुद्र पार भी बप्पा की श्रद्धा से जुड़े अद्भुत प्रसंग और मंदिर हमें देखने को मिलते हैं। इस वर्ष भी दस दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव की धूम मची हुई है। इस मौके पर जानते हैं उन मंदिरों और स्थलों के बारे में, जिनका नाम कम लिया जाता है लेकिन जहां बप्पा की महिमा अद्वितीय तरीके से अनुभव की जाती है।

भारत के खास गणेश मंदिर

रणथंभौर का त्रिनेत्र गणेश मंदिर, राजस्थान

रणथंभौर किले की दीवारों के बीच स्थित इस प्राचीन मंदिर में भगवान गणेश की तीन नेत्रों वाली दुर्लभ प्रतिमा विराजमान है। यही नहीं, यहां गणेश जी के साथ माता पार्वती, भगवान शिव और उनके वाहन मूषक की मूर्तियां भी विराजती हैं। एक अनोखी परंपरा यह है कि भक्त शादी के कार्ड और पत्र सीधे बप्पा को संबोधित करके इस मंदिर में भेजते हैं, जिन्हें पूजा में अर्पित किया जाता है।

कैसे पहुंचें: रणथंभौर किला सवाई माधोपुर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर है। जयपुर, दिल्ली और मुंबई से रेल कनेक्टिविटी आसानी से उपलब्ध है।

गिरिजात्मज गणेश मंदिर, लेण्याद्री, महाराष्ट्र

अष्टविनायक यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा यह मंदिर भगवान गणेश के जन्मस्थान के रूप में प्रसिद्ध है। लोककथा है कि यहीं माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए तप किया था। यह गुफा मंदिर 30 बौद्ध गुफाओं के बीच स्थित है और इसकी विशेषता इसका दक्षिणमुखी होना है, जो बेहद दुर्लभ माना जाता है। यहां की प्रतिमा चट्टान से ही निर्मित है।

कैसे पहुंचें: पुणे से लगभग 95 किलोमीटर दूर यह स्थल स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए यात्रियों को 340 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।

ढोलकल गणेश, दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़

समुद्र तल से तीन हज़ार फीट ऊंचाई पर जंगलों के बीच स्थित यह पत्थर से बनी गणपति प्रतिमा एक हज़ार साल पुरानी मानी जाती है। यह करीब तीन फीट ऊंची है और विशेष रूप से जनेऊ के स्थान पर लोहे की श्रृंखलाओं से अलंकृत है। लोककथा के अनुसार यहां कभी भगवान परशुराम और गणेश जी के बीच युद्ध हुआ था। इस मूर्ति को 2012 में दोबारा खोजा गया।

कैसे पहुंचें: दंतेवाड़ा के लिए नजदीकी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन जगदलपुर है। यहां से गांव तक लगभग 7 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई करनी पड़ती है।

गुड्डट्टु श्री विनायक मंदिर, कर्नाटक

उडुपी जिले के जंगलों से घिरा यह विशिष्ट मंदिर अपने "आयिरा कोड़ा सेवा" अनुष्ठान के लिए प्रसिद्ध है। रोजाना हजार कलशों के जल से गणपति की मूर्ति स्नान कराई जाती है। यहां की प्रतिमा हमेशा पानी में डूबी रहती है और इसे भारत का एकमात्र जलाधिवास गणपति कहा जाता है।

कैसे पहुंचें: मंगलुरु इस मंदिर का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन है। वहां से करीब 100 किलोमीटर की दूरी तय करके कुंदापुर पहुँचना होता है, फिर वहां से 15 किलोमीटर की यात्रा आगे करनी पड़ती है।

सीमाओं से परे गणपति की भक्ति

मात्सुचियामा शोडेन, टोक्यो, जापान

जापान के असाकुसा इलाके में स्थित यह मंदिर गणपति को कंगितेन स्वरूप में पूजता है। यहां भक्त मिठाइयों की जगह सफेद मूली चढ़ाते हैं, जो आपसी प्रेम और सौहार्द का प्रतीक मानी जाती है। हर साल जनवरी में दाइकोन महोत्सव यहां का मुख्य आकर्षण होता है।

श्री शक्ति विनायगर मंदिर, पेनांग, मलेशिया

19वीं सदी में बना यह मंदिर भारतीय समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है और यहां हर गणेशोत्सव पर भव्य रथयात्राएं निकाली जाती हैं। इसकी स्थापत्य शैली औपनिवेशिक और द्रविड़ वास्तुकला का सुंदर संगम है।

अरुलमिगु नवशक्ति विनायगर मंदिर, सेशेल्स

1992 में स्थापित यह सेशेल्स का एकमात्र हिंदू मंदिर है। यहां का गोपुरम रंगीन मूर्तियों से सजा हुआ है और यह स्थानीय हिंदू समुदाय के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया है।

माउंट ब्रूमो का गणेश प्रतिमा स्थल, इंडोनेशिया

करीब 700 साल पुरानी गणेश प्रतिमा सक्रिय ज्वालामुखी ब्रूमो की ढलान पर स्थित है। स्थानीय जनजाति का विश्वास है कि यह प्रतिमा उन्हें ज्वालामुखी के प्रकोप से बचाती है। आज भी लोग फूल और फल अर्पित करते हैं, और मान्यता है कि यदि यह परंपरा टूटेगी तो ज्वालामुखी फट पड़ेगा।

आस्था की डोर जोड़ती है पूरी दुनिया

गणेशोत्सव हमें केवल धार्मिक भक्ति ही नहीं दिखाता, बल्कि यह बताता है कि किस तरह एक सांस्कृतिक शक्ति सीमाओं को लांघकर लोगों को जोड़ सकती है। भारत से लेकर जापान और इंडोनेशिया तक, गणपति की महिमा हर जगह अलग अंदाज़ में झलकती है। कहीं मूली का प्रसाद है तो कहीं जल में डूबी मूर्ति, पर संदेश एक ही है—विघ्नहर्ता हमेशा अपने भक्तों के साथ खड़े हैं।