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Up Kiran, Digital Desk: आजकल हमारी बदलती लाइफस्टाइल और बढ़ते प्रदूषण ने शरीर पर काफी असर डाला है, और इसका सबसे ज़्यादा असर हमारे फेफड़ों पर पड़ता है. फेफड़ों से जुड़ी एक ऐसी ही गंभीर बीमारी है 'क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज', जिसे हम संक्षेप में COPD कहते हैं. सुनकर थोड़ा मुश्किल लगता है, लेकिन ये बीमारी धीरे-धीरे हमारे फेफड़ों को कमज़ोर करती जाती है, जिससे साँस लेना मुश्किल हो जाता है. दुखद बात यह है कि हमारे देश भारत में लाखों लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं और उनमें से ज़्यादातर को पता ही नहीं होता कि वे इसके शिकार हैं.

क्या है COPD और क्यों यह ख़तरनाक है?

COPD एक ऐसी बीमारी है जिसमें फेफड़ों के अंदर हवा जाने वाले रास्ते सिकुड़ जाते हैं और धीरे-धीरे हवा पूरी तरह से बाहर निकल नहीं पाती. इसके आम लक्षणों में पुरानी खांसी, बलगम, साँस फूलना और छाती में जकड़न शामिल हैं. दिक्कत ये है कि शुरुआत में इसके लक्षण इतने हल्के होते हैं कि लोग इसे सामान्य खांसी-जुकाम समझकर अनदेखा कर देते हैं, और तब तक इंतज़ार करते हैं जब तक बीमारी गंभीर रूप न ले ले.

क्यों 45 की उम्र के बाद खास अलर्ट रहने की ज़रूरत है?

डॉक्टरों और विशेषज्ञों का कहना है कि 45 साल की उम्र के बाद COPD के होने का ख़तरा बढ़ जाता है, और ख़ासकर उन लोगों के लिए ये और भी ज़रूरी हो जाता है जो धूम्रपान करते रहे हैं या अभी भी करते हैं. सिर्फ़ धूम्रपान ही नहीं, अगर आप धूल, धुआं, प्रदूषण, या फिर खाना बनाने के लिए जलने वाली लकड़ी/गोबर के धुएं (बायोमास फ्यूल) के संपर्क में रहते हैं, तो भी आपको अलर्ट रहने की ज़रूरत है.

स्पीरोमेट्री: फेफड़ों का हाल जानने का आसान टेस्ट

तो इस बीमारी का पता कैसे चले? इसका जवाब है 'स्पीरोमेट्री' टेस्ट. ये कोई बहुत मुश्किल या दर्दनाक टेस्ट नहीं है, बल्कि बिल्कुल आसान है. इसमें आपको एक मशीन (जिसे स्पाइरोमीटर कहते हैं) में तेज़ी से साँस छोड़नी होती है. यह मशीन बताती है कि आपके फेफड़ों से कितनी हवा निकलती है और कितनी तेज़ी से निकलती है. ये छोटा सा टेस्ट आपके फेफड़ों की कार्यक्षमता (लंग फंक्शन) का पता लगाता है और बताता है कि उनमें कोई दिक्कत तो नहीं है.

समय पर जाँच से क्या फ़ायदा होगा?

सोचिए, अगर बीमारी का पता शुरू में ही चल जाए तो कितना फ़ायदा होगा? समय पर COPD का पता चलने से हम इसके बिगड़ने से रोक सकते हैं और इससे निपटने के बेहतर उपाय कर सकते हैं. इससे जीवन की गुणवत्ता (Quality of life) भी अच्छी रहती है और आप अपनी दिनचर्या ठीक से चला पाते हैं. सही समय पर इलाज़ शुरू होने से फेफड़ों को ज़्यादा नुकसान होने से बचाया जा सकता है.

तो दोस्तों, अगर आप 45 की उम्र पार कर चुके हैं और ऊपर बताए गए ख़तरे के कारकों में से किसी के संपर्क में हैं, तो अपनी फेफड़ों की सेहत को नज़रअंदाज़ न करें. अपने डॉक्टर से सलाह लें और 'स्पीरोमेट्री' टेस्ट के बारे में पूछें. आपकी एक छोटी सी सावधानी, आपकी साँसों को एक लंबी और स्वस्थ ज़िंदगी दे सकती है!