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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल ही में मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में पहलगाम आतंकी हमले को लेकर बेहद भावुक और दृढ़ संदेश दिया। उन्होंने इस घटना को केवल धर्म या संप्रदाय की लड़ाई न मानते हुए, इसे धर्म और अधर्म के बीच का संघर्ष बताया।

धर्म और अधर्म की लड़ाई, पंथ की नहीं

मोहन भागवत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह लड़ाई किसी एक पंथ या मजहब के खिलाफ नहीं है। यह अच्छाई और बुराई के बीच की जंग है। उन्होंने बताया कि हिंदू संस्कृति में कभी भी धर्म पूछकर किसी की हत्या नहीं की जाती, लेकिन कट्टरपंथी सोच रखने वाले लोग ऐसा करते हैं। उन्होंने पहलगाम हमले का उदाहरण देते हुए बताया कि यह कट्टरपंथ की उपज है, जहां धर्म के आधार पर निर्दोष लोगों की जान ली गई।

शक्ति का प्रतीक: अष्टभुजा

उन्होंने आगे कहा कि जब हम अधर्म का मुकाबला करना चाहते हैं, तो हमारे पास शक्ति भी होनी चाहिए। जैसे देवी दुर्गा अष्टभुजाओं से असुरों का संहार करती हैं, वैसे ही आज देश को भी शक्ति की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह शक्ति केवल हथियारों की नहीं, बल्कि एकता, धैर्य और संकल्प की भी होनी चाहिए।

कुछ लोग कभी नहीं सुधरते

संघ प्रमुख ने उदाहरण देते हुए कहा कि सृष्टि में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो समझने से नहीं, बल्कि उनका अंत कर देने से ही सुधारते हैं। उन्होंने रावण का उदाहरण देते हुए कहा कि वह वेदों का ज्ञाता था लेकिन उसका मन, बुद्धि और शरीर अधर्मी बन चुका था। ऐसे लोगों को तर्क से नहीं सुधारा जा सकता, इसलिए श्रीराम ने उसका वध किया।

दुष्टों का अंत जरूरी

भागवत ने कहा कि हम भारतीयों की परंपरा सबको स्वीकार करने की रही है, लेकिन जब बात दुष्टों की आती है तो उनके लिए दया नहीं होनी चाहिए। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर हम सुरक्षा को हल्के में लेंगे तो इतिहास खुद को दोहराएगा। देश को मजबूत सेना की जरूरत है ताकि किसी भी प्रकार की गफलत में न रहें।

संघ शक्ति: एकता में बल

कलियुग में, जैसा भागवत ने कहा, संघ शक्ति का मतलब है एकजुट रहना। उन्होंने बताया कि दुख की घड़ी में देश ने जात-पात, धर्म, क्षेत्र सब कुछ भुला दिया और एकजुटता दिखाई। यही एकता देश की असली ताकत है। जब हम सब साथ खड़े होते हैं, तो दुश्मन की हिम्मत नहीं होती हमारी तरफ आंख उठाकर देखने की। और अगर किसी ने ऐसा करने की कोशिश की, तो उसका जवाब भी उसे मिलेगा।

सकारात्मकता फैलाएं

अंत में उन्होंने कहा कि हमें अपने आसपास के लोगों की अच्छाइयों को देखना चाहिए, एक-दूसरे को प्रेरणा देनी चाहिए। समाज में सकारात्मकता फैलाना ही सच्चा धर्म है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस बार देश का उत्तर ऐसा होगा जो दुष्टों को सोचने पर मजबूर कर देगा।

भागवत का यह पूरा भाषण केवल एक घटना पर प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि यह एक गहरा संदेश था कि जब अधर्म सिर उठाता है, तब धर्म को केवल सहनशीलता नहीं बल्कि शक्ति के साथ खड़ा होना पड़ता है। देश की एकता, ताकत और सकारात्मक सोच ही इसका असली उत्तर है।

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