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Up Kiran, Digital Desk: राजस्थान के जालौर जिले के भीनमाल और रानीवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के 24 से अधिक गांवों में 21 दिसंबर को एक पंचायत ने महिलाओं के स्मार्टफोन पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया था। इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर एक बहस शुरू हो गई थी कि सुंधा पट्टी के इन गांवों में महिलाओं के स्मार्टफोन पर पाबंदी लगाने की बात की जा रही है। जैसे ही यह मामला वायरल हुआ, इस पर जांच की गई और समाज के पांच प्रमुख व्यक्तियों से बातचीत की गई। उन्होंने बताया कि जो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है, उसमें कोई निर्णय नहीं लिया गया था, बल्कि महिलाओं के द्वारा दिए गए सुझाव को समाज के सामने रखा गया था। इसमें यह कहा गया था कि 26 जनवरी तक अगर समाज के लोग इसे उचित समझें तो इसे लागू किया जा सकता है।

'यह तो बस एक प्रस्ताव था'

समाज के पांच प्रमुख व्यक्तियों का कहना है कि यह कदम इसलिए उठाया गया था क्योंकि महिलाओं के पास मोबाइल होने से बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। गेमिंग और साइबर धोखाधड़ी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, साथ ही सोशल मीडिया पर आने वाले कुछ आपत्तिजनक विज्ञापनों का भी बच्चों पर बुरा असर हो रहा है। हालांकि, यह समाज के सामने रखा गया एक मात्र सुझाव था, जिसमें 26 जनवरी तक समाज के लोगों से विचार मांगे गए थे। लेकिन यह कोई अंतिम निर्णय नहीं था और अब इन पांच प्रमुख व्यक्तियों का कहना है कि इसे वापस ले लिया गया है।

'कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया था'

समाज के एक प्रमुख व्यक्ति, सुजानाराम ने बताया कि रविवार को हुई बैठक में समाज की महिलाओं की ओर से बच्चों पर स्मार्टफोन के दुष्प्रभावों को लेकर एक सुझाव प्रस्तुत किया गया था, लेकिन इसमें कोई निर्णय नहीं लिया गया था। न ही इसे लागू किया गया है। समाज के लोगों से यह अपेक्षित था कि वे इस पर अपने विचार रखें ताकि जनवरी तक इस पर कोई निर्णय लिया जा सके। उन्होंने बताया कि आजकल स्मार्टफोन के कारण बच्चे अधिक गेम खेल रहे हैं और खाने-पीने में भी आलसी हो रहे हैं। वे स्कूल से घर आते हैं, तो होमवर्क करने की बजाय सिर्फ मोबाइल में लगे रहते हैं। बच्चे अक्सर साइबर धोखाधड़ी का शिकार हो जाते हैं क्योंकि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं होती।

'स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए मोबाइल जरूरी है'

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि महिलाओं और लड़कियों से यह नहीं कहा गया कि उनका मोबाइल पूरी तरह से बंद कर दिया जाए। आजकल के समय में, पढ़ाई करने वाली लड़कियों के लिए मोबाइल रखना जरूरी हो गया है ताकि वे घर पर ही अपनी पढ़ाई कर सकें। वे घर में मोबाइल का उपयोग करके अपनी शिक्षा में कोई रुकावट नहीं आने देतीं।

'सुझाव और प्रस्ताव को वापस ले लिया गया है'

समाज की महिलाओं ने बताया कि उनका यह सुझाव था कि बच्चे दिनभर पढ़ाई छोड़कर मोबाइल पर वक्त बर्बाद कर रहे हैं, जिससे उनकी आंखों और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इसके अलावा, बच्चे स्कूल जाने में आलस्य दिखाते हैं और घर आकर मोबाइल देखने में समय गंवाते हैं, जिससे उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसी कारण से गांव के बुजुर्गों को यह सुझाव दिया गया था, जिस पर समाज की बैठक में प्रस्ताव रखा गया था। हालांकि, इसे अभी तक लागू नहीं किया गया था, और केवल समाज से सुझाव मांगे गए थे। अब इस पूरे मामले के सोशल मीडिया पर विरोध के बाद समाज के पांच प्रमुख व्यक्तियों ने बैठक बुलाकर इस निर्णय को वापस ले लिया है और इस सुझाव और प्रस्ताव को भी रद्द कर दिया गया है।