धर्म डेस्क। मानव हमेशा से प्रकृति और उससे जुड़ी वस्तुओं की आराधना करता आया है। शास्त्रों में भी प्रकृति को सर्वोच्च स्थान देते हुए उसका आभार जताने और उसकी पूजा का महत्व बताया है। प्रकृति से जुड़ी शुभ वस्तुओं का सामिप्य मानव जीवन के लिए शुभ होता है। प्रकृति से जुड़ी शुभ वस्तुओं में मोरपंख का विशेष महत्व है। यह भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में विशेष महत्व रखता है। मोरपंख को सौंदर्य, शांति एवं आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। भगवान कृष्ण के मुकुट में मोरपंख सुशोभित होता है, जो उनकी दिव्यता और सरलता का प्रतीक है।
भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में मोरपंख को सौभाग्य एवं सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। घर में मोरपंख रखने से नकारात्मक शक्तियां का शमन होता है और शांति का माहौल बना रहता है। इसे घरों में शुभ चिन्ह के रूप में भी रखा जाता है। रंग-बिरंगे एवं आकर्षक मोरपंख का उपयोग सजावट, पूजा और सांस्कृतिक उत्सवों में भी किया जाता है। मोर सरस्वती देवी का भी वाहन है, इसलिए विद्यार्थी मोरपंख को अपनी पाठ्य-पुस्तकों के मध्य भी रखते आ रहे हैं।
ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्र में मोर के पंखों को महत्वपूर्ण माना गया है। इसे मुख्यतः उत्तर-पश्चिम दिशा में रखने से सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य में सुधार होता है। मोरपंख का प्रयोग वास्तु दोष के शमन हेतु भी किया जाता है। घर के दक्षिण-पूर्व में मोरपंख लगाने से धन-धान्य में बढ़ोत्तरी होती है और अचानक कष्ट नहीं आता है। इसी तरह इसे व्यवसाय स्थल की तिजोरी पर मोरपंख रखने से लाभ में वृद्धि होती है। इसी तरह मोरपंख को बच्चों के अध्ययन कक्ष में रखने से उनकी एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मोरपंख के प्रयोग से कालसर्पदोष के दुष्प्रभाव को आसानी से दूर किया जा सकता है। पूर्णिमा के दिन तकिए के कवर के अंदर 9 मोरपंख रखने से कालसर्प दोष का प्रभाव क्षीण हो जाता है। इससे किसी भी प्रकार का दुःस्वप्न भी नहीं आता है। इसी तरह मोरपंख की हवा से भूत-प्रेत का साया भी खत्म हो जाता है। चांदी की ताबीज में मोरपंख को डालकर बच्चे के सिर की दाहिनी तरफ दिन-रात रखने से बच्चा नजरदोष आदि से बचा रहता है।
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