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Up Kiran, Digital Desk: दुनिया की जासूसी एजेंसियों में अगर किसी का नाम खौफ और हैरत के साथ लिया जाता है तो वह है इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद (Mossad)। इनकी कार्यशैली इतनी साफ और चुपचाप होती है कि विरोधी को पता होता है कि उसके साथ क्या हुआ और किसने किया, लेकिन दुनिया के सामने रत्ती भर भी सबूत पेश नहीं किया जा सकता। ऐसी ही एक सनसनीखेज घटना साठ के दशक में घटी थी, जिसने न सिर्फ मोसाद की धाक जमाई बल्कि पूरी दुनिया के मन में इजरायल के लिए एक डर भी पैदा कर दिया।

दरअसल, यह मिशन किसी बड़ी राजनीतिक मजबूरी से नहीं, बल्कि एजेंसी के शौर्य प्रदर्शन और एक तरह के 'एडवेंचर' के लिए अंजाम दिया गया था। मोसाद ने रूस का सबसे ताकतवर लड़ाकू विमान चुरा लिया था, जिससे उस समय कई देश खौफ खाते थे।

वो हथियार, जिसके नाम से काँपते थे देश

साठ का दशक शीत युद्ध और सैन्य शक्ति प्रदर्शन का दौर था। सोवियत संघ (तत्कालीन रूस) ने अपना एक बेहद उन्नत लड़ाकू विमान मिग-21 (MiG-21) तैयार किया था। यह विमान उनके पहले के मिग-19 का अपग्रेडेड वर्जन था और इसे उस समय के सबसे खतरनाक हथियारों में गिना जाता था।

सोवियत संघ ने यह विमान मिस्र, इराक और लेबनान जैसे कई अरब देशों को सप्लाई किया था। इन देशों से लगातार मिल रही धमकियों से तंग आकर इजरायल और उसकी खुफिया एजेंसी मोसाद ने एक अकल्पनीय फैसला किया: इस दुर्जेय विमान को चुरा लिया जाएगा!

'ऑपरेशन डायमंड': जब एक चुनौती बन गई उपलब्धि

साल 1963 में मोसाद के चीफ मीर एमिट (Meir Amit) ने अपने टॉप ऑफिसर्स के साथ एक मीटिंग की। उन्होंने पूछा कि ऐसा कौन सा काम किया जाए जो मोसाद को एक नई ऊंचाई पर ले जाए? जवाब एक ही था: "मिग-21"।

बस, यहीं से 'ऑपरेशन डायमंड' का खाका खींचा गया। तय हुआ कि यह विमान हर हाल में इजरायल लाया जाएगा। शुरुआती दो कोशिशें विफल रहीं। लेकिन मोसाद अपनी चाल चलने के लिए तैयार था। उन्होंने रणनीति बदली और फैसला किया कि विमान को रूस से नहीं, बल्कि उन देशों से चुराया जाएगा जिन्हें रूस ने बेचा है।

एक पायलट, दस लाख डॉलर और कामयाबी

कहानी में ट्विस्ट तब आया जब इराकी वायु सेना का पायलट मुनीर रेड्फा (Munir Redfa) सामने आया। वह इराकी सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियों, प्रमोशन न मिलने और कम वेतन से नाराज़ था। मोसाद की एजेंट ने उसकी इस कमजोरी को भांप लिया।

उसे दस लाख अमेरिकी डॉलर (उस समय एक बहुत बड़ी रकम) देने का वादा किया गया। इसके अलावा, इजरायल में सरकारी नौकरी, परिवार के लिए सुरक्षित घर और नागरिकता जैसे कई बड़े लालच दिए गए। मुनीर रेड्फा तैयार हो गया।

आखिरकार, 16 अगस्त 1966 का वो ऐतिहासिक दिन आया। मुनीर रेड्फा मिग-21 विमान लेकर इराक से उड़ान भरा और सुरक्षित इजरायल के एयरस्पेस में उतर गया। 'ऑपरेशन डायमंड' न सिर्फ सफल रहा, बल्कि यह मोसाद के इतिहास की सबसे बड़ी और 'मज़े-मज़े' में पूरी की गई जासूसी कामयाबी बन गया। इसने अरब देशों को एक स्पष्ट संदेश दिया कि इजरायल की पहुँच उनकी कल्पना से कहीं ज्यादा गहरी है।