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Up Kiran, Digital Desk: देश के विभाजन की त्रासदी, जिसने लाखों जिंदगियों को तबाह कर दिया और भारत के इतिहास पर एक अमिट घाव छोड़ा, एक बार फिर चर्चा का विषय बन गई है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने हाल ही में कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों के लिए 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' (Partition Horrors Remembrance Day) के अवसर पर विशेष मॉड्यूल जारी किए हैं। इन मॉड्यूल्स में भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराए गए मुख्य कारकों और व्यक्तियों पर प्रकाश डाला गया है, जिससे देश की राजनीति में एक नई बहस छिड़ गई है।

एनसीईआरटी मॉड्यूल का मुख्य दावा: जिन्ना, कांग्रेस और माउंटबेटन जिम्मेदार?

नवीनतम खुलासों के अनुसार, एनसीईआरटी के नए मॉड्यूल्स इस बात पर जोर देते हैं कि भारत का विभाजन कोई अनपेक्षित घटना नहीं थी, बल्कि यह गलत विचारों और निर्णयों का परिणाम थी। इन मॉड्यूल्स के अनुसार, विभाजन के लिए तीन प्रमुख पक्ष जिम्मेदार थे:

माउंटबेटन की जल्दबाजी और कांग्रेस की भूमिका पर सवाल

एनसीईआरटी के मॉड्यूल विशेष रूप से इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे लॉर्ड माउंटबेटन ने जून 1948 से सत्ता हस्तांतरण की मूल तिथि को घटाकर अगस्त 1947 कर दिया। इस जल्दबाजी को "लापरवाही का एक बड़ा कार्य" बताया गया है, जिसके कारण सीमा निर्धारण के लिए केवल पांच सप्ताह का समय मिला, जिससे अराजकता और भ्रम की स्थिति पैदा हुई।

मॉड्यूल्स में यह भी तर्क दिया गया है कि ब्रिटिश शासकों ने भारत को एकजुट रखने के लिए क्रिप्स मिशन (1942) और कैबिनेट मिशन (1946) जैसे प्रस्ताव रखे थे, जिनमें भारत को डोमिनियन स्टेटस या एक संघ के रूप में रखने का प्रावधान था। हालांकि, कांग्रेस ने इन प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया, जिससे विभाजन की ओर रास्ता और साफ हो गया। सरदार पटेल के एक बयान का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें उन्होंने विभाजन को "कड़वी दवा" कहा था, लेकिन गृहयुद्ध से बेहतर विकल्प माना था।

विभाजन के अनवरत प्रभाव: कश्मीर से सांप्रदायिक तनाव तक

एनसीईआरटी के यह विशेष मॉड्यूल केवल अतीत पर ही प्रकाश नहीं डालते, बल्कि यह भी बताते हैं कि विभाजन के परिणाम आज भी भारत को किस प्रकार प्रभावित कर रहे हैं। इनमें उल्लेख है कि कैसे विभाजन ने कश्मीर को भारत के लिए एक नया सुरक्षा संकट बना दिया। पड़ोसी देश अक्सर कश्मीर मुद्दे का इस्तेमाल भारत पर दबाव बनाने के लिए करते हैं। इसके अतिरिक्त, मॉड्यूल सांप्रदायिक राजनीति और जातीय तनाव को भी विभाजन के दीर्घकालिक परिणामों के रूप में देखते हैं, जो आज भी समाज में मौजूद हैं।

कांग्रेस का तीखा पलटवार: "इस किताब को जला दो!"

एनसीईआरटी के इन मॉड्यूल्स पर कांग्रेस पार्टी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने मॉड्यूल को भ्रामक और "असत्य" बताते हुए कहा कि "इस दस्तावेज़ को जला देना चाहिए।" खेड़ा का तर्क है कि विभाजन का असली कारण हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के बीच मिलीभगत थी, और वे आरएसएस को राष्ट्र के लिए खतरा बताते हुए यह भी कहा कि विभाजन के विचार को पहली बार 1938 में हिंदू महासभा ने प्रचारित किया था, जिसे 1940 में जिन्ना ने दोहराया।

वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि पार्टी इतिहास से भाग रही है जब वह उसके लिए सुविधाजनक नहीं होता। भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि उस समय कांग्रेस के नेतृत्व में नेहरू थे और उन्होंने सत्ता के लालच में गलत कदम उठाए, जिनकी कीमत आज भी देश चुका रहा है।

इतिहास को समझना क्यों महत्वपूर्ण है?

एनसीईआरटी के ये विशेष मॉड्यूल, जो नियमित पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि परियोजनाओं, पोस्टर, चर्चाओं और वाद-विवाद के माध्यम से पढ़ाए जाते हैं, इतिहास को एक नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करते हैं। इनका उद्देश्य युवा पीढ़ी को विभाजन की भयावहता, उसके कारणों और दीर्घकालिक परिणामों के बारे में जागरूक करना है, ताकि वे अतीत की गलतियों से सीख सकें और भविष्य में ऐसी त्रासदियों को होने से रोक सकें। यह मॉड्यूल इस बात पर भी जोर देते हैं कि नेतृत्व की अदूरदर्शिता और जल्दबाजी कैसे राष्ट्रीय आपदा का कारण बन सकती है।

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