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Up Kiran, Digital Desk: भारत में हाल ही में हुए पहलगाम अटैक के बाद शुरू हुए “ऑपरेशन सिंदूर” ने न सिर्फ सीमा पार के आतंकी नेटवर्क को झकझोरा बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी भूचाल ला दिया। इस ऑपरेशन की पृष्ठभूमि में जो तथ्य सामने आ रहे हैं वे चौंकाने वाले हैं: तुर्की ने पाकिस्तान को ड्रोन मुहैया कराए और चीन ने एयर डिफेंस सिस्टम जो भारत पर हमले की तैयारी में इस्तेमाल हुए।
तुर्की का पर्दे के पीछे खेल
पहले तो इस खबर को अफवाह समझा गया मगर बाद में सामने आईं खुफिया रिपोर्ट्स और मीडिया इन्वेस्टिगेशन से यह स्पष्ट हुआ कि तुर्की सरकार ने पाकिस्तान को भारत के खिलाफ ऑपरेशन में टेक्नोलॉजिकल मदद दी। इसके बाद भारत में तुर्की के उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम शुरू हो गई – सोशल मीडिया पर #BoycottTurkeyProducts ट्रेंड करने लगा।
पाकिस्तान-तुर्की की 'भाईचारा डिप्लोमेसी'
हमले के कुछ ही दिनों बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ इस्तांबुल पहुंचे। आधिकारिक रूप से इसे व्यापारिक दौरा बताया गया मगर पाकिस्तानी मीडिया ने ही इसका असली मकसद उजागर किया – भारत के खिलाफ मिली सैन्य मदद का व्यक्तिगत रूप से शुक्रिया अदा करना।
शरीफ ने ट्वीट किया कि प्रिय भाई एर्दोगन से मिलने का सम्मान प्राप्त हुआ। भारत-पाक तनाव में समर्थन के लिए धन्यवाद।
वहीं तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन ने भी इस मुलाकात को “ऐतिहासिक” और “रणनीतिक रूप से अहम” बताया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वे सुरक्षा क्षेत्रीय सहयोग और अर्थव्यवस्था के मुद्दों पर गहराई से काम करेंगे।
आतंक के खिलाफ लड़ाई या आतंक का समर्थन
यह विडंबना ही है कि आतंक को बढ़ावा देने वाला पाकिस्तान अब खुद को आतंक से पीड़ित बताता है। इसी मंच पर एर्दोगन ने शरीफ को खुफिया तकनीक प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता की पेशकश भी की – यह दिखावा जितना कूटनीतिक लगता है उतना ही खतरनाक भी है।
एक ओर भारत में सैंकड़ों निर्दोषों की जान लेने वाले हमलों के पीछे इन दो देशों की भूमिका की आशंका दूसरी ओर उसी समय व्यापार को 5 अरब डॉलर तक बढ़ाने का साझा लक्ष्य – क्या यह ‘भाईचारे’ का रिश्ता है या रणनीतिक साजिश?
भारत की प्रतिक्रिया और जनभावनाएं
भारत सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है मगर जनता का गुस्सा साफ दिखाई दे रहा है। सोशल मीडिया पर तुर्की और चीनी कंपनियों के बहिष्कार की मांग जोरों पर है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को न सिर्फ सैन्य बल्कि आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर भी जवाब देने की रणनीति अपनानी होगी।
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