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Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड में बीते कुछ वर्षों से परीक्षा प्रणाली की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे थे। खासकर पेपर लीक और भर्ती परीक्षाओं में घोटालों ने युवाओं का भरोसा तोड़ दिया था। इसी को देखते हुए राज्य सरकार ने पहली बार एक बेहद सख्त नकल विरोधी कानून को अमल में लाया – एक ऐसा कदम जिसे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सबसे साहसी फैसलों में गिना जा रहा है।

इस अध्यादेश को लेकर मुख्यमंत्री और बीजेपी ने इसे नकल के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करार दिया था। 'उत्तराखंड प्रतियोगी परीक्षा अध्यादेश 2023' के तहत सरकार ने अब तक 100 से अधिक नकल माफियाओं को सलाखों के पीछे भेजा है। माना जा रहा था कि इस कानून के आने के बाद परीक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और विश्वास लौटेगा।

लेकिन हाल ही में हुई एक घटना ने इस कानून की गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हरिद्वार में एक परीक्षा केंद्र से पेपर के तीन पन्ने परीक्षा से पहले ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। इस घटना ने राज्य सरकार की मुहिम को तगड़ा झटका दिया। कानून की साख अब सार्वजनिक परीक्षा प्रणाली की अग्निपरीक्षा बन गई है।

मुख्यमंत्री के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण मोड़ था। सरकार ने तत्काल एक एसआईटी जांच का ऐलान किया, जिसकी निगरानी हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को सौंपी गई। लेकिन जांच शुरू होने से पहले ही उस रिटायर्ड जज के राजनीतिक संपर्कों को लेकर विवाद खड़ा हो गया। आंदोलन कर रहे युवाओं ने जज बीएस वर्मा के भाजपा नेताओं से संबंधों को लेकर सवाल उठाए।

सरकार ने एक बार फिर तेजी से कदम उठाते हुए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस यूसी ध्यानी की अध्यक्षता में एक नई जांच आयोग का गठन किया। इसके साथ ही, अब सरकार ने इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने का फैसला लिया है  जो इस मुद्दे को लेकर सरकार की गंभीरता को दर्शाता है।