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चुनावों में मनचाही कामयाबी न मिलने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए नई चुनौतियां सामने आई हैं। जाट-गुर्जर राजनीति का वर्चस्व बदलता दिख रहा है। मुजफ्फरनगर में जाट नेता और केंद्रीय मंत्री डॉ. संजीव बालियान की हार और बागपत सीट पर रालोद का कब्जा भाजपा के लिए करारा झटका है।

बागपत के निवर्तमान सांसद सत्यपाल सिंह ने चुनाव के दौरान खुद को पार्टी से अलग कर लिया और इस बड़ी हार ने भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की राजनीतिक ताकत को कमजोर कर दिया है। रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट राजनीति के केंद्र में होंगे और उन्हें मंत्री पद मिलना तय है। इस बीच, भाजपा अपने जाट नेताओं को मजबूत करने के लिए नए चेहरे लाने की योजना बना रही है। ताकि पश्चिम में खोई हुई ताकत वापस पा सके।

2014 में भाजपा का उदय पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति लंबे समय से जाट-गुर्जर समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत संभालने वाली राष्ट्रीय लोकदल जाटों की पसंदीदा पार्टी थी। हालांकि, बाद में सत्ता में आने के बाद सपा, बसपा और भाजपा जैसी पार्टियों ने जाटों और गुर्जरों दोनों पर खासा ध्यान दिया। 
 

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