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लखनऊ। प्रमुख सचिव विधानसभा प्रदीप दुबे ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में अक्टूबर 2019 में शपथ पत्र देकर अपनी उम्र 57 साल बताई थी, जबकि अभिलेखों के मुताबिक उनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल 1957 है। इस हिसाब से श्री दुबे की उम्र अक्टूबर 2019 में ही 62 साल से अधिक थी। श्री दुबे ने यह एफिडेबिट रामचन्द्र अस्थाना वर्सेज प्रदीप कुमार दुबे, प्रमुख सचिव, यूपी लेजिस्लेटिव एसेम्बली सेक्रेटरिएट, लखनऊ के केस में 2019 में क्रिमिनल केस नम्बर 656 (C) 2014 में दाखिल की थी। कोर्ट में दाखिल एफिडेबिट में उम्र और अभिलेखों में मौजूद जन्मतिथि के बीच काफी अंतर है। ऐसे में इनकी सही उम्र क्या है? यह विवेचना का विषय है।
प्रमुख सचिव विधानसभा प्रदीप कुमार दुबे पर यह भी आरोप लगते रहे हैं कि वह अपनी नियुक्ति को वैद्य ठहराने के लिए जिस नियमावली का सहारा ले रहे हैं। वह नियमावली न तो आज तक विधानसभा के सदन के पटल पर रखी गई है और न ही इस नियमावली पर अभी तक चर्चा हुई। यह नियमावली अभी तक सार्वजनिक भी नहीं हुई है। जिससे यह कहा जाए कि इस नियमावली के तहत कार्य होगा। उन पर यह भी आरोप है कि साल 2017 में श्री दुबे रिटायर हुए पर उनके रिटायरमेंट का आदेश दो साल बाद साल 2019 में जारी हुआ।
जानकारी के मुताबिक, प्रदीप कुमार दुबे जनवरी, 2009 से 6 मार्च, 2012 तक उत्तर प्रदेश सरकार में प्रमुख सचिव, संसदीय कार्य थे और उनके पास राज्यपाल के विधि परामर्शी का अतिरिक्त प्रभार भी था। प्रमुख सचिव संसदीय कार्य के साथ जुलाई 200 से मार्च 2012 तक प्रमुख सचिव, उत्तर प्रदेश विधान सभा का अतिरिक्त प्रभार भी उनके पास रहा। साल 2009 में बसपा सरकार में विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर के समय हाईकोर्ट ने उनके काम काज पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा उन पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, सरकार किसी भी दल की हो, पर उन पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। वह सभी दलों के नेताओं के चहेते रहे हैं।