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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में मतदाता सूची से लाखों नाम हटाए जाने के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने "वोटर अधिकार यात्रा" की शुरुआत की है। इस अभियान के दो चरण पूरे हो चुके हैं। यात्रा का आरंभ 17 अगस्त को सासाराम से हुआ और फिलहाल इसका दूसरा अंतराल 25 अगस्त को आया है। अगले चरण का आगाज़ 1 सितम्बर को होना तय है।
इस यात्रा में जहां एक ओर राजनीतिक नतीजों पर चर्चाएं हो रही हैं, वहीं जनता की नज़रों में राहुल की सादगी और अनुशासन भी चर्चा का विषय बन गया है। महागठबंधन के नेता भी मानते हैं कि राहुल का दिनचर्या पालन उनकी यात्रा की विशेष पहचान है।
जनता से जुड़ाव की कोशिश
राहुल गांधी का हर दिन सुबह पांच बजे शुरू होता है, जब वे लगभग 10 किलोमीटर की दौड़ पूरी करते हैं। दौड़ हमेशा यात्रा स्थल के आसपास की सड़कों पर की जाती है और इस समय उनके साथ केवल सुरक्षा कर्मी रहते हैं। इसके बाद वे स्नान और नाश्ता कर यात्रा के लिए तैयार हो जाते हैं। यात्रा शुरू होने से पहले वे स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं से हल्की-फुल्की चर्चा भी करते हैं।
लेकिन जो बात सबसे ज़्यादा ध्यान खींच रही है, वह है बच्चों के साथ उनका आत्मीय जुड़ाव। कई मौकों पर वे अपनी गाड़ी से उतरकर विद्यालयी बच्चों से बातचीत करते हैं, उनकी पढ़ाई-लिखाई और सपनों के बारे में पूछते हैं। इससे आम जनता को यह संदेश जाता है कि राहुल गांधी का फोकस केवल राजनीतिक भाषणों तक सीमित नहीं है, बल्कि वे सामाजिक संपर्क पर भी जोर देते हैं।
तेजस्वी से अलग अंदाज़
दिलचस्प पहलू यह भी है कि इस अभियान के दौरान राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव साथ रहते हुए भी अलग-अलग तरीके अपनाते हैं। राहुल अपने मोबाइल कंटेनर में बने साधारण बेडरूम में रुकते हैं, जबकि तेजस्वी होटल में ठहरते हैं। हालांकि, पहले दिन दोनों ने एक ही कंटेनर में रुकने का अनुभव साझा किया था। दोपहर का भोजन अक्सर सभी नेताओं के साथ सामूहिक रूप से होता है, लेकिन रात में राहुल का कार्यक्रम थोड़ा अलग होता है और वे रात साढ़े नौ बजे तक विश्राम के लिए लौट जाते हैं।
धार्मिक स्थलों से जुड़ाव
यात्रा के दौरान राहुल गांधी का धार्मिक स्थलों की ओर झुकाव भी सामने आ रहा है। देव स्थित सूर्य मंदिर में उन्होंने पूजा की और राज्य की समृद्धि की कामना की। इसके अलावा, राहुल और तेजस्वी दोनों ने मुंगेर के खानकाह रहमानी का भी दौरा किया। यह स्थान सूफी परंपरा से जुड़ा है और वहां की यात्रा को राहुल की पहल के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू से जोड़कर देखा जा रहा है।
"मोहब्बत की दुकान" का संदेश
इस यात्रा की एक और खास बात "मोहब्बत की दुकान" नामक संदेश वाहन है। इसके ज़रिए यात्रा को केवल राजनीतिक सफर न मानकर, समाज में भाईचारा और सद्भाव फैलाने की पहल के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। "नफ़रत के माहौल में मोहब्बत का विकल्प" — यही संदेश राहुल की यात्रा को अन्य अभियानों से अलग बनाता है।
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