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 नरेंद्र मोदी की आगामी पश्चिम बंगाल यात्रा से ठीक पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक ऐसा राजनीतिक संकेत दिया है, जो सीधे तौर पर राज्य की भाषाई पहचान और सांस्कृतिक राजनीति से जुड़ा है। ममता बनर्जी ने साफ तौर पर कहा है कि अब राज्य सरकार की बैठकों, मंचों और आयोजनों में बंगाली भाषा को प्राथमिकता दी जाएगी। यह निर्णय न सिर्फ सांस्कृतिक सम्मान का प्रतीक माना जा रहा है, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक रणनीति भी देखी जा रही है।

तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी लंबे समय से "बाहरी बनाम स्थानीय" नैरेटिव पर राजनीति करती रही हैं। ऐसे में यह नया भाषाई संदेश उस रणनीति का ही विस्तार माना जा रहा है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, यह कदम भाजपा की हिंदी भाषी राजनीति के खिलाफ एक परोक्ष जवाब है।

विशेषज्ञों का मानना है कि ममता का यह बयान उस वक्त आया है जब मोदी बंगाल की जनता से सीधे संवाद करने वाले हैं। ऐसे में ममता ने पहले ही बंगाली अस्मिता को उभारकर एक तरह से भाजपा के नैरेटिव को चुनौती दे दी है।

यह कोई पहला मौका नहीं है जब ममता ने स्थानीय भाषा और संस्कृति को सामने रखकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की हो। इससे पहले भी चुनावी मौसम में वह "जय बांग्ला" जैसे नारों को आगे रख चुकी हैं।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी की यात्रा और उनके भाषणों में ममता के इस भाषाई दांव का क्या असर पड़ता है।
 

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