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Up Kiran, Digital Desk: हरियाणा के एक छोटे से गांव से उठी चुनावी लड़ाई अब राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन चुकी है। बुआना लखू ग्राम पंचायत के सरपंच चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला न सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया की ताकत को दर्शाता है, बल्कि ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की पारदर्शिता को लेकर उठ रहे सवालों को भी एक बार फिर से सुर्खियों में ले आया है।

जब एक गांव की लड़ाई सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंची

यह पूरा मामला शुरू हुआ नवंबर 2022 के सरपंच चुनाव से, जब कुलदीप सिंह को विजेता घोषित किया गया और मोहित कुमार को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन मोहित ने हार मानने के बजाय चुनाव परिणाम को चुनाव न्यायाधिकरण में चुनौती दी। उन्होंने बूथ नंबर 69 में गड़बड़ी का आरोप लगाया और पुनःगणना की मांग की।

हालांकि, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने इस पुनःगणना के आदेश को खारिज कर दिया। इसके बाद मोहित ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल सारे बूथों की पुनःगणना का आदेश दिया, बल्कि प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कोर्ट परिसर में ही काउंटिंग करवाई और पूरे घटनाक्रम की वीडियोग्राफी भी करवाई गई।

पुनर्गणना में नतीजे पलट गए मोहित को 1051 वोट मिले, जबकि कुलदीप को 1000 वोट। न्यायालय ने 11 अगस्त को फैसला सुनाते हुए मोहित कुमार को वास्तविक विजेता घोषित किया।

लोकतंत्र की नींव पर उठते सवाल

यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण बन गया है क्योंकि शायद यह पहला मौका है जब ईवीएम से जुड़े स्थानीय निकाय के चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर पुनर्गणना करवाई और नतीजा बदला। इससे यह भी साफ हो गया कि तकनीक पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता और चुनावी व्यवस्था में पारदर्शिता को लेकर अभी भी कई स्तरों पर सुधार की आवश्यकता है।

विपक्ष की प्रतिक्रिया: तेजस्वी यादव का केंद्र सरकार पर निशाना

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस घटना को बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। उन्होंने इसे उदाहरण बनाकर ईवीएम प्रणाली और चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

तेजस्वी का कहना है कि जब एक ग्राम पंचायत में ईवीएम से गड़बड़ी हो सकती है, तो बड़े चुनावों में इसकी संभावनाएं और अधिक गंभीर हो सकती हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा और चुनाव आयोग की मिलीभगत से लोकतंत्र की नींव को कमजोर किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि अब चुनाव आयोग ने वोटों की वीडियोग्राफी को 45 दिनों के भीतर ही नष्ट करने का प्रावधान बना दिया है, जिससे भविष्य में सबूत जुटाना और मुश्किल हो जाएगा।

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